इस निर्देशिका की प्रविष्टियाँ तीन भागों में हैं। प्रथम-भाग शोध का शीर्षक
संकेत करता है, जबकि दूसरा-भाग स्कॉलर या शोधार्थी का नाम तथा तृतीय-भाग कृतकार्य
का वर्ष तथा उपाधि का नाम सम्बन्धित विश्वविद्यालय का नाम के साथ दर्शाता है। जैसा
कि प्रत्येक डेसर्टेशन अपने शीर्षक के किसी की-वर्ड के अन्तर्गत प्रलेखित होता है,
अतः, प्रथम स्थान के रूप में विषय शीर्षक पर आधारित प्रस्तुतिकरण को इस निर्देशिका
में लिया गया है, ताकि उस समबन्धित विषय के समस्त डेसर्टेशन्स एक ही स्थान पर
एक-के-पश्चात्-एक इस प्रारूप में आयें। । जब किसी एक डेसर्टेशन में एक से अधिक विषय
लिये गये हैं या एकाधिक की-वर्ड सम्बद्ध हैं तब उस डेसर्टेशन को विभिन्न की-वर्ड के
अन्तर्गत लिये गया है अथवा �कृपया वहाँ भी प्रविष्टि को देखें� ऐसा संकेतिक किया गया
है। �वहाँ भी देंखे� की प्रविष्टियाँ जहाँ भी आवश्यक हैं, प्रदान की गयी हैं, जिससे
पाठक सरलता से सम्बद्ध शीर्षक/क्षेत्र से सम्बन्धित प्रविष्टियों को खोज पायें जिनमें
कि वह रूचि रखता/रखती है। उदाहरणार्थ जैसे यदि डेसर्टेशन का नाम �दि रघुवंश
महाकाव्य ऑफ़ कालिदास : ए स्टडी�, है तब प्रविष्टियाँ तीनस्थलों पर इस प्रकार दी गयीं
हैं 1. रघुवंश महाकाव्य, दि, ऑफ़ कालिदास : ए स्टडी; 2. कालिदास, दि रघुवंश
महाकाव्य ऑफ़, : ए स्टडी; 3. रघुवंश : कृपया कालिदास के अन्तर्गत भी देखें।
आङ्ग्लभाषेतर डिसर्टेशन्स के लिये शोध-की भाषा का संकेताक्षर कोष्ठकों में दिया गया
है। प्रविष्टि के द्वितीय भाग में प्रस्तुत शोधलेखक का नाम में भी उसके उपनाम को
प्रथम दिया गया है। इसके पश्चात् विश्वविद्यालय का नाम, जिसने उपाधि प्रदान की है,
उपाधिप्रदान करने का वर्ष, उपाधि का विशिष्ट नाम यथा पी-एच.डी., डी.लिट्. (डी.लिट्.
तथा विद्यावाचस्पति दोनों के लिये) एवं वि.वारिधि(विद्या वारिधि के लिये) दिये गये
हैं।
इस निर्देशिका से सम्बन्ध उद्देश्य तथा लाभ, विविध हैं। प्रथमिक एवं अग्रणी तौर पर
वृहद् संस्कृत सागर-साहित्यान्तर्गत किये गये शोध-विषयों को सामान्य पाठक तथा
शोध-विद्यार्थियों के सम्मुख लाना जिससे वे उनसे परिचित हो सकें तथा उनकी प्रतियों
को सम्बद्ध विश्वविद्यालयों के ग्रन्थालयों से प्राप्त कर सकें। द्वितीयक, एक विषय
पर क्या शोध कार्य पहले ही किया जा चुका है, शोधार्थी विषय का चुनाव करते समय इसके
प्रति समर्थ एवं अभिसूचित हों।
शोधार्थियों द्वारा लिये गये शोध कार्य पूर्ण हो चुके है या नहीं डेसर्टेशन से
सम्बन्धित यह सही सूचना भी यहाँ समावेशित की गयी है। अपूर्ण जानकारी या सूचना को
यहाँ �प्रगति पर है� से प्रविष्ट किया गया है। हम यहाँ यह उल्लेख करना चाहते हैं कि
हमारा मुख्य उद्देश्य यहाँ पर विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा संस्थाओं में किये गये
विभिन्न शोधाध्ययन के सम्बन्ध में सूचना प्रदान करना है। किन्हीं शोधकार्यों के
सम्बन्ध में सम्पूर्ण जानकारी जैसे कि परिणाम की घोषणा आदि अनुपूरक के रूप में दी
जायेगी, अथवा यह सम्बद्ध विश्वविद्यालयों से मँगवायी जा सकती है।
यहाँ यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह प्रोजेक्ट-कार्य प्रो. के.वी.शर्मा,
संस्थापक निर्देशक श्री सारदा एज़ुकेशन सोशायटी रिसर्च सेंटर, अडयार, चेन्नई के
द्वारा प्रारम्भ किया गया था। उनका मुख्य उद्देश्य भारतविद्या के क्षेत्र में
कार्यरत् स्कॉलर्स को सहायता तथा मार्ग-निर्देशन प्रदान करना था। यदि कोई किसी
विशिष्ट शीर्षक पर एक सन्दर्भ पूछता तो वे निश्चित रूप से दस और सन्दर्भ देने में
प्रसन्न होते, और यदि सन्दर्भ स्रोत उपलब्ध नहीं होते तो वे अन्यत्र से खोजकर विषय
के जिज्ञासु स्कॉलर के लिये उपलब्ध कराते। कोई भी रिसर्च-स्कॉलर उनके पास से
रिक्तहस्त वापस नहीं लौटा। यह उनकी उत्कट एवं तीव्र इच्छा रहती थी कि व्यक्ति अपना
कार्य गाम्भीर्य पूर्वक सम्पादित करें। इसीलिये उन्होंने शोधकार्यों की निर्देशिका
या भारतीय विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थाओं द्वारा समुत्पादित पी-एच.डी. शोध-कार्यों
की इन्वेंटरी सूची को तैयार करने के विषय में सोचा, जिससे कि गम्भीर शोधार्थियों को
मार्गदर्शन किया जा सके। तदनन्तर घटनानुक्रम से यह प्रस्ताव राष्ट्रिय संस्कृत
संस्थान के द्वारा प्रकाशन के उद्देश्य से स्वीकृत भी कर लिये गया।
उन्होंने शोध-कार्य-गत् सूचनाओं का एकत्रीकरण काफी पहले प्रारम्भ किया था। 2000 को
चिह्नीकरण बिन्दू के रूप में उन्होंने लेते हुये जो भी तब तक उपलब्ध हो चुका था,
उसके व्यवस्थापन का कार्य प्रारम्भ किया। इसके पहले कि यह कार्य प्रकाश में आ पाता,
प्रो. शर्मा दिनाँक 14.01.05 को चिर् शान्ति मे लय हो गये। अपने पीछे वे आँकडों के
विशाल कलेवर को छोड़ गये जिसको पूरा करने का हमारा आकर्षण एवं दायित्व रहा। वर्तमान
संस्करण वास्तव में उन्हीं की शुभाकांक्षाओं एवं आशीर्वचनों का प्रतिफलन है जिसने
हमें उनके द्वारा निर्मित एवं अपनायी विधियों पर कार्यान्वित होने को अभिप्रेरित
किया।
यह रिसर्च सेंटर उन व्यक्तियों, संस्थाओं तथा जर्नल्स विशेष रूप से �प्राचीज्योति�,
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का एक वार्षिक प्रकाशन-�डाइजेस्ट ऑफ़ इन्डोलॉजिकल स्टडीज़�
का अनुग्रहीत है जिन्होंने अपने आँकड़ों को भेजकर हमें इस लक्ष्य की प्राप्ति में
सक्षम बनाया।
इस अवसर पर हम प्रो.वी.कुटुम्ब शास्त्री, कुलपति, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नयी
दिल्ली, के प्रति भी विशेष धन्यवाद ज्ञापित करना चाहेंगे जिन्होंने इस प्रस्ताव के
प्रकाशन की स्वीकृति प्रदान की। यह संस्थान उनके द्वारा प्रदत्त विद्वदानुग्रही
सहयोग एवं उत्साह का हमेशा ऋणी रहेगा। हमारा विशिष्ट धन्यवाद श्री ए.वी.के. मूर्ति
जो कि अपने यशस्वी पिता के सुपुत्र हैं, के प्रति भी ज्ञापित करना चाहेंगे,
जिन्होंने न केवल उनके अपूर्ण कार्य को आगे बढ़ाया वरन् उसके उचितप्रारूप में
सम्पन्न होने की जिम्मेदारी एवं दायित्व हमें सौंपा। हमारे कार्यालयीन सहयोगियों ने
भी अविलम्ब टङ्कित संशोधनसामग्री एवं वर्णानुक्रण का संशोधन किया। हम इस अवसर पर
वास्तव में प्रत्येक का एवं सभी का धन्यवाद ज्ञापित करना चाहेंगे हैं, जिन्होंने इस
कार्य को सम्पूर्ण करने में आवश्यक एवं समयोचित सहायता प्रदान की।
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