प्रस्तुत निर्देशिका भारतीय विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर आधारित किये गये शोध
कार्यों की आङ्ग्ल वर्णानुक्रम से व्यवस्थित शब्दानुक्रमणिका है। यह शब्दानुक्रमणिका
वास्तव में कियी एक स्कॉलर के द्वारा किसी दिये गये शीर्षक पर किये गये कार्यों की
वृहद् अनुप्रस्तुति है। वास्तव यह एक ऐसी कुञ्जी या तालिका का निर्माण करती है,
जिनसे शोध कार्यों की निधियों को खोलकर उनके वृहद् क्षेत्र में प्रवेश किया जा सके
यह ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्र में आज तक के किये गये शोध कर्यों की नवीनतम जानकारी
भी प्रदान करती है। वर्णानुक्रम से व्यवस्थापित, यह शीर्षकों एवं विषयों की विशाल
शृंखला पर प्रकाश डालती है जो कि विभिन्न स्कॉलर्स द्वारा वे अध्ययनार्थ लिये जा सके
हैं। इस प्रकार एक बार स्रोत की जानकारी, जो कि किसी भी प्रकार के शोध का आधारभूत
स्रोत होता है, के ज्ञात होने पर व्यक्ति के पास उस क्षेत्र में किये गये विशिष्ट
शोध कार्यों से सम्बन्धिन विधियों, चर्चित शीर्षक, क्षेत्र, विषयादि की प्राथमिक
जानकारी उपलब्ध होती है। और परिणाम के रूप में यह स्कॉलर के लिये विषयारम्भ हेतु
उसकी वर्तमान स्थिति से अवगत करती है तथा उसे यह भी सहायता प्रदान करती है कि कैसे
इस दिशा में आगे बढ़ा जाये।
इस प्रकार वर्तमान कार्य मुख्यतया उपर्युक्त उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये
सम्पादित किया गया है। प्रथमतया यह कि स्कालर्स अपने अनुसंधानप्रयास में पुनरावृत्ति
न करें, जिससे उस सूक्ष्म अन्तिम निराशा को भी टाला जा सके, इसके लिये भी यह सहायता
करती है स्थिति और इस रूप में यह शब्दानुक्रमणिका वाँछित लक्ष्य तक पहुँचने में
हमारी सहायक भी है। विभिन्न विश्वविद्यालयों के नाम तथा उन विश्वविद्यालयों में
विशिष्ट क्षेत्रों पर किये गये शोध-कार्य भी अपने स्वरूप में प्रतिभाशाली स्कॉलर्स
के लिये भी शोध-कार्यों के क्षेत्र तथा स्थान का चयन करने में भी मार्गदर्शक होंगे।
विगत् दोशताब्दियों से आङ्गल भाषा के आगमन एवं वैश्वीकरण के भारतीय जीवन पर प्रभाव
के चलते हुये भी उच्चतर स्तर पर संस्कृत-अध्ययन पर सम्मान तथा गहनता में कोई अल्पता
नहीं आई है। वर्तमात प्रोजेक्ट-कार्य में समाहित, सातहज़ार से भी अधिक संस्कृत एवं
संस्कृत-सम्बन्धित विषयों पर किये गये डॉक्टरल डेसर्टेशन्स, जो कि 120
विश्वविद्यालयों एवं प्राच्यविद्या शोधसंस्थानों में किये गये हैं, भी उपर्युक्त
तथ्य को प्रमाणित करता है।
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