महामहोपाध्याय गोकुलनाथ - म. म. गोकुलनाथ का जन्म बिहार प्रदेश के दरभङ्गा जिले में मँगरौनी नामक गाँव में फणदहनामक मैथिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गोकुलनाथ महान् शास्त्रज्ञ और प्रतिभाशाली कवि थे। न्याय, व्याकरण, मीमांसा और वेदान्त आदि अनेक शास्त्रों में इनकी अबाध गति थी। इनके विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है-
मातर्गोकुलनाथनामकगुरोर्वाग्देवि! तुभ्यं नम:
पृच्छामो भवतीं महीतलमिदं त्यक्त्वैव यद्गच्छसि।
भूलोके वसति: कृता मम गुरौ स्वर्गे तथा गीष्पतौ
पाताले फणिनायके भगवति! प्रौढि: क्व लब्धाधिका।।
(पदवाक्यरत्नाकर, भूमिका, पृ. ३)
गोकुलनाथ के पिता का नाम पं. पीताम्बरशर्मा तथा माता का नाम उमा देवी था। पीताम्बर शर्मा स्वयं अनेक शास्त्रों के प्रकाण्ड पण्डित थे। गोकुलनाथ ने अपने पिता के वैदुष्य का उल्लेख अनेक स्थलों में किया है। अमृतोदय नामक नाटक के अन्त में अपने फणदहवंश तथा पिता के वैदुष्य का उल्लेख करते हुए गोकुलनाथ ने कहा है-
''श्रुति:- वत्से! आन्वीक्षिकि! सत्यमाह गिरां देवी, भवन्त्येवं विधा एव फणदहद्विजा:, पश्य-
सुभाषितेष्र्याकलुषसुलोचनविषानलै:।
फणं दहन्ति शेषस्य तत: फणदहा मता:।।
गोकुलनाथ के पिता का परिचय अमृतोदय के निम्रलिखित द्रष्टव्य है-
प्रकृति गहने वैशेषिके विवृतिं व्यधा-
दकुरुतचतुर्वर्गव्याख्यामृतानि च भारते।
भरतवचसां तत्त्वाख्यान्यैर्निबन्धमभाषत।
व्यतनुत तथा तिस्रो वाणीविलासकवि: कथा:।। ५.१९।।
गोकुलनाथ ने अपनी कृतियों में अपने भाइयों का भी उल्लेख किया है। ये चार भाई थे- त्रिलोचन, धनञ्जय, गोकुलनाथ और जगद्धर। गोकुलनाथ, त्रिलोचन और धनञ्जय से छोटे तथा जगद्धर से बड़े थे। अमृतोदय नाटक में उन्होंने स्वयं लिखा है-
'भगवति अस्ति तस्य परापरब्रह्ममीमांसनमांसलस्य सकलसंसारसरणिविभागविदो विद्यानिधे: पीताम्बरस्य चतुर्णां पुत्राणामेकतमो गोकुलनाथो नाम।
पं. पीताम्बर और उमादेवी के चारो पुत्रों का उल्लेख करते हुए गोकुलनाथ ने अपने को उनका तीसरा पुत्र बताया है-
यो जन्मतश्च गुणतश्च मत: कनिष्ठ:
श्रीमत्त्रिलोचनकवेश्च धनञ्जयाच्च।
स श्रीजगद्धरधरातिलकाग्रजन्मा
निर्मास्यति प्रगुणतत्त्वरसं प्रबन्धम्।। अमृतोदय,५.२५।।
गोकुलनाथ ने अपने पिता से ही समस्त विद्याओं का अध्ययन किया -
अधिगतमुपाध्यायाद्विद्यानिधेरनुचिन्तित-
विरलविषयग्राहिण्यपि स्वया जडया धिया।
बहुलमथवा स्तोकं यद्यन्मया श्रुतमर्जितं
परिणतिरियं तस्य प्रीतस्तयास्तु पर: पुमान्।। वही,५.१७।।
गोकुलनाथ फत्तेसाह राजाओं के आश्रय में रहे। इसका उल्लेख उन्होंने अपने एकावली नामक ग्रन्थ में किया है।
वृत्तसागररत्नानां सारमुद्धृत्य निर्मिता।
एकावली फतेसाह! तव कण्ठे लुठत्वसौ।।
इस प्रकार यह प्रमाणित हो जाता है कि गोकुलनाथ पीताम्बर शर्मा और उमादेवी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता पीताम्बर शर्मा से समस्त शास्त्रों का अध्ययन किया।
गोकुलनाथ उपाध्याय का समय -
गोकुलनाथ ने अपने वंश का परिचय तो दिया है किन्तु उन्होंने अपने समय का उल्लेख अपनी किसी कृति में नहीं किया। वंशपञ्जी एवं कतिपय उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इनके निश्चित समय तक पहुँचा जा सकता है। गोकुल नाथ ने अपने से पाँचवी पीढ़ी के पूर्वज रुचिपति का उल्लेख अमृतोदय नाटक में किया है-
निगमसरसो माने दण्डा: प्रमत्तसरस्वती-
स्खलनपतनारम्भे हस्तावलम्बनयष्टय:।
सुकृतसदनोपादानन्ते भवन्ति भजन्ति ये
रुचिपतिकवेर्वंशस्तम्बप्ररोहकरीरताम्।। वही,५.१७
मैथिल ब्राह्मण वंशावली में रुचिपति को गोकुलनाथ की पाँचवी पीढ़ी का पूर्वज बताया गया है। मिथिला में यह भी प्रसिद्धि है कि इस वंश पर रुचिपति के समय से ही सरस्वती की कृपा हुई थी। सम्पूर्णानन्द संस्कृतविश्वविद्यालय से प्रकाशित पदवाक्यरत्नाकर की भूमिका में इनके जीवन से सम्बद्ध अनेक घटनाओं का प्रामाणिक वर्णन है।
महामहोपाध्याय गोकुलनाथ की कृतियों में से एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'मासमीमांसा’ भी है। जिसकी पुष्पिका में यह लिखा है-
'इति महामहोपाध्यायश्रीगोकुलनाथशर्मप्रणीत-मासमीमासा-परिपूर्णा।
शाके १६८०।
भाद्रकृष्णदशमीचन्द्रेऽलिखदिदं रजनीनाथ:’।।
वर्तमान प्रचलित ई. सन् तथा शाके में ७८ वर्षों का अन्तर है। अत: १६८०+७८ = १७५८ ई. में यह पुस्तक रजनीनाथ नामक किसी पण्डित द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है। भागलपुर (विहार) के व्यास प्रेस से मासमीमांसा मुद्रित होकर प्रकाशित हुयी है। इसी मुद्रित पुस्तक के १८ वें पृष्ठ पर यह लिखा है-
'अस्मिन्नैवेकत्रिंशदधिकषोडशताङ्किते (१६३१) शककाले वैशाखो मलमास:’ इति । 'तदधुनापि सम्भवत्येव, सम्प्रति हि शकाब्दा एकत्रिंशदधिकषोडशशती’ (१६३१)। इससे यह प्रमाणित होता है कि महामहोपाध्याय गोकुलनाथ ने १६३१ शाके तदनुसार १७०९ ई. में मासमीमांसा नामक ग्रंथ की रचना की थी। मासमीमांसा की रचना महाराज मिथिलेश राघवसिंह (रघुवंश सिंह) के अनुरोध से की गयी थी, यह भी विद्वत्समाज में प्रसिद्ध है। इन सब कारणों से यह अवधारणा जनसामान्य में प्रचलित है कि गोकुलनाथ उपाध्याय सत्रहवीं शताब्दी के परार्ध तथा १८ वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध में (ईसवी १६५० के तथा बाद १७५० के बीच) में मिथिला में विद्यमान थे। पूर्वावधि निर्णय इस तरह हो जाता है कि उन्होंने ईसवी १६०९ में 'मांसमीमांसा’ का प्रणयन क्षयवर्ष आदि के निर्णयार्थ ही किया होगा। प्राय: उसके आसपास ही क्षयवर्ष पड़ता रहा होगा। मिथिलेश ने प्रतिष्ठित पण्डित मानकर महामहोपाध्याय गोकुलनाथ से उस विषय पर विवेचना पूर्ण निबन्ध लिखने का अनुरोध किया होगा और उनके आत्मीय अनुरोध की रक्षा के लिये परिपक्व पाण्डित्यशाली महामहोपाध्याय गोकुलनाथ उपाध्याय ने मासमीमांसा नामक पुस्तक लिखी होगी। इन सब तथ्यों पर विचार करने से पता चलता है कि 'मांसमीमांसा’ का निर्माण गोकुलनाथ की प्रौढावस्था में हुआ था। अत: उनकी स्थिति को १६५० ई. के बाद मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
गोकुलनाथ की कृतियाँ -
गोकुलनाथ ने शताधिक ग्रन्थों की रचना की थी। उनके उपलब्ध ग्रन्थ निम्रलिखित हैं-
१. चक्ररश्मि - इस कृति का दूसरा नाम 'रश्मिचक्र’ भी प्राप्त होता है। यह गंगोशोपाध्याय के तत्त्वचिन्तामणि ग्रन्थ की व्याख्या के रूप में प्रसिद्ध है।
२. विद्योत - इस ग्रन्थ को 'दीधितिविद्योत’ नाम से भी प्रसिद्धि प्राप्त है। यह रघुनाथ शिरोमणि की तत्त्वचिन्तामणिदीधिति की टीका है।
३. न्यायसिद्धान्ततत्त्वम् - गोकुलनाथ ने पदवक्यरत्नाकर में पंचमी विभक्ति के प्रसंग में इसका निर्देश किया है। इसमें न्यायशास्त्रीय पदार्थों का संकलन किया गया है। यह अतिविस्तृत ग्रन्थ है।
४. मिथ्यात्वनिरुक्ति - इसे 'मिथ्यात्वनिर्वचन’ नाम से भी जाना जाता है। इसमें अति सारगर्भित वाक्यों में अद्वैतमत की स्थापना हुई है।
५. पदवाक्यरत्नाकर - यह शाब्दबोध विषयक ग्रन्थ है। यदुनाथ मिश्र की टीका के साथ सम्पूर्णानन्द संस्कृतविश्वविद्यालय से प्रकाशित है।
६. दिक्कालनिरूपण - यह लघुतम पुस्तिका कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित 'ग्रन्थगुच्छ’ में संकलित है।
७. कुसुमाञ्जलिविवरणम् - इसका दूसरा नाम 'कुसुमांजलिटीका’ भी है। यह उदयनाचार्य के न्यायकुसुमांजलि की टीका है।
८. बौधाधिकारविवरणम् - इस ग्रन्थ की चर्चा पदवाक्यरत्नाकर में प्राप्त होती है। यह उदयनाचार्य के 'आत्मतत्त्वविवेक’ की टीका है।
९. रसमहार्णव: - यह अलंकारशास्त्रीय ग्रन्थ है। इसका भी उल्लेख पदवाक्यरत्नाकर में प्राप्त होता है।
१०. काव्यप्रकाशविवरणम्-यह काव्यप्रकाश की प्रसिद्ध टीका है।
११. लाघवगौरवरहस्यम् - इनकी यह रचना भी प्रसिद्ध है।
१२. शक्तिवाद - यह न्यायशा का ग्रन्थ है।
१३. मुक्तिवाद - इसका दूसरा नाम मुक्तिविमर्श भी है।
१४. कुण्डकादम्बरी - अल्पायु में ही गंगा में डूब कर मृत्यु को प्राप्त हुई अपनी पुत्री कादम्बरी की स्मृति में गोकुलनाथ ने इस ग्रन्थ की रचना की थी।
कुण्डकादम्बरीनाम्रा ग्रन्थोऽयं तव कीर्तये।
मया गोकुलनाथेन सोपपत्तिर्निबध्यते॥
१५. कादम्बरी - यह द्वैतनिर्णय का टीका ग्रन्थ है।
१६. कादम्बरीप्रश्रोत्तराणि
१७. कादम्बरीकीर्तिश्लोक- दोनों ही ग्रन्थ पुत्री कादम्बरी की स्मृति में लिखे गये है।
१८. एकावली - फतेसाह राजा की आज्ञा से लिखित छन्दोग्रन्थ।
इनके अतिरिक्त गोकुलनाथ की वृहत्तरंगिणी, शुद्धिविवेक, अशौचनिर्णय, मासमीमांसा, सूक्तिमुक्तावली, आलोकविवरण, अमृतोदयनाटक तथा शिवस्तुति या शिवशतक जैसी अन्य अनेक रचनाएं प्राप्त होती है। इनमें कुछ का प्रकाशन हो चुका है। कुछ ग्रन्थ अतिलघु किन्तु अतिमहत्त्वपूर्ण हैं। उनका प्रकाशन 'ग्रन्थगुच्छ’ में हुआ है।