१
चक्रु: श्रीमानसिंहस्य सिंहासनमुपेयुष:।
राज्याभिषेकसंस्कारं यथाविधि पुरोधस:।।
राज्याभिषेकसंस्कारं यथाविधि पुरोधस:।।
२
तुङ्गपीठप्रतिष्ठोऽसौ जनताभिर्नमस्कृत:।
पूर्वाद्रिशिखरारूढो भासां निधिरिवाऽऽबभौ।।
पूर्वाद्रिशिखरारूढो भासां निधिरिवाऽऽबभौ।।
३
उत्सङ्गविस्फुरत्खड्गा: सामन्ता माधवादय:।
उपोपविष्टास्तं भेजुर्देवा जम्भजितं यथा।।
उपोपविष्टास्तं भेजुर्देवा जम्भजितं यथा।।
४
तत्क्षणं तस्य सदसि सदसि ध्वस्तविद्विष:।
सनूपुरझणत्कारं नर्तक्यो ननृतुर्नवा:।।
सनूपुरझणत्कारं नर्तक्यो ननृतुर्नवा:।।
५
दानलज्जितसन्तानो मानो मानधनाग्रणी:।
अमानमहसोत्तानवितानं तिरयन्बभौ।।
अमानमहसोत्तानवितानं तिरयन्बभौ।।
६
अर्कविस्फूर्त्तिरर्कांश: श्रीमदर्कवरादृत:।
स तर्कातीतसम्पत्ति: सम्पर्कं प्राप पण्डितै:।।
स तर्कातीतसम्पत्ति: सम्पर्कं प्राप पण्डितै:।।
७
इन्दुर्हिन्दुसमाजस्य कस्तूरीबिन्दुभालक:।
उदयं कलयामास स कला: सकला दधत्।।
उदयं कलयामास स कला: सकला दधत्।।
८
प्रभावो मानसिंहस्य मम वाचां न गोचर:।
भयोज्झितोऽपि यो राज्ये राजते स्म भयाऽन्वित:।।
भयोज्झितोऽपि यो राज्ये राजते स्म भयाऽन्वित:।।
९
हास्येऽपि नाब्रवीद्वाग्मी मानो मिथ्या वच: खलु।
अस्तु हृद्यमहृद्यं वा मा नो मिथ्या वच: खलु।।
अस्तु हृद्यमहृद्यं वा मा नो मिथ्या वच: खलु।।
१०
विना कवीश्वरं दिल्लीश्वरं वा जगदीश्वरम्।
ननाम मानसिंहस्य मानोदग्रं न मस्तकम्।।
ननाम मानसिंहस्य मानोदग्रं न मस्तकम्।।
११
जितमाकाबिलं येन येन धौतोऽम्बुधावसि:।
येन प्रापि शिलादेवी स मान: कैर्न वर्ण्यते।।
येन प्रापि शिलादेवी स मान: कैर्न वर्ण्यते।।
१२
ललदुल्लोलदुल्लोललीलालङ्घितसागर:।
अखानि मानसिंहेन महीयान्मानसागर:।।
अखानि मानसिंहेन महीयान्मानसागर:।।
१३
रेजिरे मानराजस्य चतुर्विंशतिरङ्गना:।
यथावदभिधास्तासामभिधातुमथारभे।
यथावदभिधास्तासामभिधातुमथारभे।
१४
राठोडरत्नदुहिता महिषी मानवर्मण:।
कनकाचलविस्पर्द्धिवक्षोजा कनकावती।।
कनकाचलविस्पर्द्धिवक्षोजा कनकावती।।
१५
संसेव्य मानसिंहं या जगत्सिंहमजीजनत्।
ऊर्जोज्ज्वलप्रतिपदीष्वक्षिषड्विधुवत्सरे।।
ऊर्जोज्ज्वलप्रतिपदीष्वक्षिषड्विधुवत्सरे।।
१६
सीमा सौभाग्यभाग्यानां रूपविस्मारितस्मर:।
ववृधे युद्धविद्यासु जगत्सिंहो जगच्छु्रत:।।
ववृधे युद्धविद्यासु जगत्सिंहो जगच्छु्रत:।।
१७
अपि द्वादशवर्षीयो यो दिल्लीवल्लभाज्ञया।
खानजादाभिधं वीरं जिगाय युधि लीलया।।
खानजादाभिधं वीरं जिगाय युधि लीलया।।
१८
कुमारस्याऽप्यहो यस्य कुमारसमतेजस:।
वीर्यमर्कवरो वीक्ष्य तुतोष तुषितोपम:।।
वीर्यमर्कवरो वीक्ष्य तुतोष तुषितोपम:।।
१९
यस्मै श्रीरायजादेति वितीर्य पदवीं पराम्।
ददौ नैजं नवं नागं नागोरनगरं च स:।।
ददौ नैजं नवं नागं नागोरनगरं च स:।।
२०
नेत्रान्तसूत्रितारुण्यस्तारुण्यस्तिमितच्छवि:।
राजकन्या: स जग्राह ग्राहध्वजदशो दश।।
राजकन्या: स जग्राह ग्राहध्वजदशो दश।।
२१
तासु तस्मादजायन्त सनयास्तनयास्त्रय:।
महासिंहो जुझारश्च ततारोऽपि तृतीयक:।।
महासिंहो जुझारश्च ततारोऽपि तृतीयक:।।
२२
चतस्र: कन्यकास्तत्र मृतास्तिस्र: कुमारिका:।
याऽवशिष्टा कनिष्ठा सा श्यामादिकुँवरा स्मृता।।
याऽवशिष्टा कनिष्ठा सा श्यामादिकुँवरा स्मृता।।
२३
अवराऽपि वरा श्यामकुँवरा रूपसम्पदा।
सीसादहररामेण परिणीता यथाविधि।।
सीसादहररामेण परिणीता यथाविधि।।
२४
केचिदाहुर्जगत्सिंहाज्जज्ञिरे पञ्चकन्यका:।
तासां मध्येऽवशिष्टे द्वे शेषास्तिस्रो विपेदिरे।।
तासां मध्येऽवशिष्टे द्वे शेषास्तिस्रो विपेदिरे।।
२५
तयोर्ज्येष्ठा तु या कोककुँवरा लोकमोहिनी।
सा हि साहितुरासाहं वाग्मी नाहमत: परम्।
सा हि साहितुरासाहं वाग्मी नाहमत: परम्।
२६
धृत्वाऽसिं हो जगत्सिंहो वनसिंहान्विपाटयन्।
अम्बावतीपरिसरं परं करिसरं व्यधात्।।
अम्बावतीपरिसरं परं करिसरं व्यधात्।।
२७
कुमारशब्दभागेव जगत्सिंहो व्यपद्यत।
प्राय: पुरुषरत्नानि द्रष्टुं न क्षमते विधि:।।
प्राय: पुरुषरत्नानि द्रष्टुं न क्षमते विधि:।।
२८
जज्वलुर्ज्वलने पञ्चजगत्सिंहमनुस्त्रिय:।
त्यजन्त्यसून्सुखं वह्नौ पतिं न तु पतिव्रता:।।
त्यजन्त्यसून्सुखं वह्नौ पतिं न तु पतिव्रता:।।
२९
यन्नाम्ना कनकावत्या सुमेरुशिखरोन्नति:।
जगच्छिरोमणेरुच्चै: प्रासाद: किल कारित:।।
जगच्छिरोमणेरुच्चै: प्रासाद: किल कारित:।।
३०
महासिंहस्य महतोऽभूवन्नैकादशस्त्रिय:।
तथैका काप्यहो दासी सदा शीलसमुज्ज्वला।।
तथैका काप्यहो दासी सदा शीलसमुज्ज्वला।।
३१
तत्र चोदयसिंहस्य पौत्री सीसादगोत्रजा।
जयसिंहं सुतं लेभे दीपप्राक्कुँवरां सुताम्।।
जयसिंहं सुतं लेभे दीपप्राक्कुँवरां सुताम्।।
३२
शुचे: कृष्णप्रतिपदि वसुषट्षड्धराब्दके।
जयसिंहस्य जननं जननन्दथवेऽभवत्।।
जयसिंहस्य जननं जननन्दथवेऽभवत्।।
३३
ज्येष्ठायां मिथुने लग्रे योगे सिद्धौ भृगावयम्।
त्रिषु दण्डेषु मार्तण्डोदयात्खाक्षिपलेष्वभूत्।।
त्रिषु दण्डेषु मार्तण्डोदयात्खाक्षिपलेष्वभूत्।।
३४
तनौ तमो धनेऽङ्गारगुरू केतुविधू मदे।
मन्दो झौम्भो भृगुं लेभे व्यये ज्ञे नौ ग्रहा: शिशो:।।
मन्दो झौम्भो भृगुं लेभे व्यये ज्ञे नौ ग्रहा: शिशो:।।
३५
मानसिंहाज्जगत्सिंहो महासिंहस्ततो महान्।
जयसिंहो महासिंहादहोसिंहपरम्परा।।
जयसिंहो महासिंहादहोसिंहपरम्परा।।
३६
अजनिष्ट तथा दास्यां पुत्रो मोहनदासक:।
ततोऽपि जज्ञिरे पुत्राश्चत्वारश्चतुरा: परम्।।
ततोऽपि जज्ञिरे पुत्राश्चत्वारश्चतुरा: परम्।।
३७
ते यथा रामचन्द्राख्यो द्वारिकादास इत्यपि।
नृसिंहदासो गोपालदासश्चत्वार आख्यया।।
नृसिंहदासो गोपालदासश्चत्वार आख्यया।।
३८
तत्र गोपालदासस्य तनुजोऽतनुविक्रम:।
उत्सवप्रसवे तस्थौ वसवे वसुसम्भृते।।
उत्सवप्रसवे तस्थौ वसवे वसुसम्भृते।।
३९
अदायि दीपकुँवरा दीपकद्युतिरुच्चकै:।
राष्ट्रोढाऽमरसिंहाय सिंहायतमहौजसे।।
राष्ट्रोढाऽमरसिंहाय सिंहायतमहौजसे।।
४०
जयसिंहं तु जननी बालं व्याहतिशङ्कया।
आदाय विगलत्तन्द्रा द्यौसामध्यवसच्चिरम्।।
आदाय विगलत्तन्द्रा द्यौसामध्यवसच्चिरम्।।
४१
दक्षिणस्यां महासिंहो हतो बालापुराहवे।
वह्नौ विविशुरस्यानुदारा दारा दशाऽऽदरात्।।
वह्नौ विविशुरस्यानुदारा दारा दशाऽऽदरात्।।
४२
बङ्गसान्त:समित्सङ्गी जुझारोऽपि जहावसून्।
अपरावत्र्तिनामाजौ जय: किं वा तनुव्यय:।।
अपरावत्र्तिनामाजौ जय: किं वा तनुव्यय:।।
४३
जुझारस्य त्रय: पुत्रा ज्येष्ठ: संग्रामसिंहक:।
राज्यं य: कल्पयामास झलायपुटभेदने।।
राज्यं य: कल्पयामास झलायपुटभेदने।।
४४
पृथ्वीसिंहो द्वितीयो य: सोऽप्यस्थात्खिरणीपुरे।
तृतीयोऽनूपसिंहस्तु सुनारपुरसंस्थित:।।
तृतीयोऽनूपसिंहस्तु सुनारपुरसंस्थित:।।
४५
अहो लाहोरकलहे किल हेति हतारिणा।
तृणवत्तनुरत्याजि ततारेण तरस्विना।।
तृणवत्तनुरत्याजि ततारेण तरस्विना।।
४६
एवमेषा यथासारं विचित्रविषया मया।
संक्षेपेण जगत्सिंहोतकानां कथिता कथा।।
संक्षेपेण जगत्सिंहोतकानां कथिता कथा।।
४७
द्वितीया मानसिंहस्य जाया जाम्बुमती मता।
हिम्मतं कुशलं चापि सुषुवे सा सुतावुभौ।।
हिम्मतं कुशलं चापि सुषुवे सा सुतावुभौ।।
४८
हिम्मतस्य गुणै: सर्वसम्मतस्य महामते:।
न काचित्संततिर्जज्ञे निर्दिशाम्यहमत्र याम्।।
न काचित्संततिर्जज्ञे निर्दिशाम्यहमत्र याम्।।
४९
तृतीया भूपतेर्भार्याऽभूद्रामकुँवराभिधा।
हम्बीरसेनतनया या श्रुता खीचणान्वया।।
हम्बीरसेनतनया या श्रुता खीचणान्वया।।
५०
अभूतां द्वे सुते अस्यां मानसिंहमहीशितु:।
याभ्यां स्वरूपतो मोमे जिते नो मेऽत्र संशय:।।
याभ्यां स्वरूपतो मोमे जिते नो मेऽत्र संशय:।।
५१
ज्यायसी रूपकुँवरा प्रवरा चातुरीषु या।
अदायि हड्डगोत्राय हरनारायणाय सा।।
अदायि हड्डगोत्राय हरनारायणाय सा।।
५२
कनिष्ठा नाम बदनाकुँवरा कूर्मभूभुजा।
मेडतान्वयराष्ट्रोढबाहुजाय विवाहिता।।
मेडतान्वयराष्ट्रोढबाहुजाय विवाहिता।।
५३
बङ्गेन्द्रकृष्णराजस्य दुहिता विहितादरा।
राज्ञो भूरिमनोभावा मनोभावाभिधा वधू:।।
राज्ञो भूरिमनोभावा मनोभावाभिधा वधू:।।
५४
महिषी कापि राष्ट्रोढबाजराजकुमारिका।
सोलङ्खिजयलालोत्था चन्द्रादिकुँवराऽप्यभूत्।।
सोलङ्खिजयलालोत्था चन्द्रादिकुँवराऽप्यभूत्।।
५५
कटोचदा परादेवी विन्दुचन्द्रकुमारिका।
तथान्या प्रेयसी राज्ञो रामचन्द्रसुताऽच्छदा।।
तथान्या प्रेयसी राज्ञो रामचन्द्रसुताऽच्छदा।।
५६
गोडेन्द्ररायमल्लस्य सुता राज्ञीसहोदरा।
ज्वलत्तनूनपात्कल्पांस्त्रींस्तनूजानसूषुवत्।।
ज्वलत्तनूनपात्कल्पांस्त्रींस्तनूजानसूषुवत्।।
५७
व्याख्याम्याख्या: क्रमात्तेषां ज्येष्ठो दुर्जनसिंहक:।
आसन्दुर्जनसिंहोता यस्माद्गोधीपुरस्थिते:।।
आसन्दुर्जनसिंहोता यस्माद्गोधीपुरस्थिते:।।
५८
द्वितीयो नाम सबलो बसवं निर्ममे पुरम्।
छप्पराघाटसम्मर्दे यो वीरो वैरिभिर्हत:।।
छप्पराघाटसम्मर्दे यो वीरो वैरिभिर्हत:।।
५९
तृतीयो भावसिंहोऽभूद्वीरभावप्रतिष्ठित:।
मानादनन्तरं यस्य राज्याप्तिर्वर्णयिष्यते।।
मानादनन्तरं यस्य राज्याप्तिर्वर्णयिष्यते।।
६०
खाग्निषट्सोमशरदि भावसिंहोद्भव: श्रुत:।
सुतोऽस्य बदरीसिंह: सुतेन्द्रकुँवराभिधा।।
सुतोऽस्य बदरीसिंह: सुतेन्द्रकुँवराभिधा।।
६१
हा हन्त बदरीसिंह: कुमारो मारमञ्जुल:।
विषमैरामयैर्ग्रस्तो सीदति स्म मया श्रुतम्।।
विषमैरामयैर्ग्रस्तो सीदति स्म मया श्रुतम्।।
६२
ऊढा राष्ट्रोढराजेन राष्ट्रोढसितकीर्तिना।
गजसिंहाह्वयेनेन्द्रकुँवरा भावसम्भवा।।
गजसिंहाह्वयेनेन्द्रकुँवरा भावसम्भवा।।
६३
आसीदासमती राज्ञीमहोराजकुमारिका।
तथैव श्यामकँवरा चित्रसेनसुता परा।।
तथैव श्यामकँवरा चित्रसेनसुता परा।।
६४
असूत श्यामकँवरा श्यामसिंहाह्वमात्मजम्।
शक्तिस्त्रिसाधनोदग्रा कोशजातमिवाक्षयम्।।
शक्तिस्त्रिसाधनोदग्रा कोशजातमिवाक्षयम्।।
६५
भवराजभवा भर्तुर्भुवो भार्या बभूव भो:।
नवोन्निद्रवयोवल्गन्मदना मदनावती।।
नवोन्निद्रवयोवल्गन्मदना मदनावती।।
६६
कान्ता कोच्छकुला कच्छसुत्राम्णो लच्छभावती।
यस्या: केशवदासातिबलावतिबलौ सुतौ।।
यस्या: केशवदासातिबलावतिबलौ सुतौ।।
६७
चन्द्रसेनसुता चन्द्रमुखीजादमवंशजा।
पुष्पकेतो रतिरिव राज्ञो राज्ञी तिलोकदा।।
पुष्पकेतो रतिरिव राज्ञो राज्ञी तिलोकदा।।
६८
देवीदेवस्य रसदा श्रीबनारसदाऽप्यभूत्।
लेभे कल्याणदासं या पुत्रं कल्याणकारिणम्।।
लेभे कल्याणदासं या पुत्रं कल्याणकारिणम्।।
६९
चन्द्रलायी पुरस्थायी कल्याणो भूपते: सुत:।
यत: कल्याणसिंहोता: कच्छा: कल्याणमूर्त्तय:।।
यत: कल्याणसिंहोता: कच्छा: कल्याणमूर्त्तय:।।
७०
ब्रूमहे काञ्चन स्फूर्जत्काञ्चनप्रतिमप्रभाम्।
प्रमदां भूप्रभोर्भूरिप्रमदां परतापदाम्।।
प्रमदां भूप्रभोर्भूरिप्रमदां परतापदाम्।।
७१
गोडगोत्रोद्भवा गोत्रापुरुहूतस्य वल्लभा।
द्वे सुते प्राप मदनावती भक्तावरीति च।।
द्वे सुते प्राप मदनावती भक्तावरीति च।।
७२
मदनावतिकाभक्तावर्यौ तर्यौ स्मराम्बुधे:।
श्रीबाघकर्मसेनाभ्यां परिणीते यथाक्रमम्।।
श्रीबाघकर्मसेनाभ्यां परिणीते यथाक्रमम्।।
७३
वटगुर्जरबाघस्य कन्या हम्बीरदाह्वया।
आसीदसीमसौन्दर्या महिषी मानवर्मण:।।
आसीदसीमसौन्दर्या महिषी मानवर्मण:।।
७४
हम्बीरदायामुत्पन्ना या रामकुँवरा सुता।
दत्ता देवेन विधिवद्धडुनारायणाय सा।।
दत्ता देवेन विधिवद्धडुनारायणाय सा।।
७५
कामिनी मानसिंहस्य कामनीति विचक्षणा।
रराज राजकुँवरा चाहमानबलात्मजा।।
रराज राजकुँवरा चाहमानबलात्मजा।।
७६
राष्ट्रोढवंशविख्याता ललना मानवर्मण:।
सुमित्रा चित्रविच्छित्तिरासीदीश्वरदासजा।।
सुमित्रा चित्रविच्छित्तिरासीदीश्वरदासजा।।
७७
मानसिंहात्सुमित्रायामात्मजौ द्वौ बभूवतु:।
प्रथम: शक्तिसिंहाह्व: फतेसिंहो द्वितीयक:।।
प्रथम: शक्तिसिंहाह्व: फतेसिंहो द्वितीयक:।।
७८
शक्तिसिंहो महाशक्तिस्तिष्ठति स्म पहाडके।
मानसिंहोतकानां यो निदानमभवत्परम्।।
मानसिंहोतकानां यो निदानमभवत्परम्।।
७९
प्रभावती प्रभोरासीद्देवी दिव्यप्रभावती।
कर्पूरचन्द्रजा चञ्चद्रत्ना रत्नावती तथा।।
कर्पूरचन्द्रजा चञ्चद्रत्ना रत्नावती तथा।।
८०
राज्ञो राज्ञी स्फुरद्रत्नमालिका रत्नमालिका।
तथैव कापि पूर्णेन्दुवदना मदनावती।।
तथैव कापि पूर्णेन्दुवदना मदनावती।।
८१
एवमेताभिरुर्वीन्द्रो राजकन्याभिरन्वित:।
विजहार यथाकामं करिणीभि: करी यथा।।
विजहार यथाकामं करिणीभि: करी यथा।।
८२
अथैकदा समाहूय साहीन्द्रो मानभूपतिम्।
योजयामास दिग्जैत्रयात्रासु परमादरात्।।
योजयामास दिग्जैत्रयात्रासु परमादरात्।।
८३
संनद्धसैन्यसन्मानो मानो राजा जिगीषया।
प्रातिष्ठत प्रतिष्ठावान्हरिप्रस्थहरेर्गिरा।।
प्रातिष्ठत प्रतिष्ठावान्हरिप्रस्थहरेर्गिरा।।
८४
मतङ्गजमदासारैरश्वटापोद्धतं रज:।
रज:पूतभटश्लाघी शमयन्समयान्नृप:।।
रज:पूतभटश्लाघी शमयन्समयान्नृप:।।
८५
प्रयाणे मानवीरस्य प्रचेलुरचला अपि।
किं च स्थिरापि समभूदस्थिरा बलवल्गनै:।।
किं च स्थिरापि समभूदस्थिरा बलवल्गनै:।।
८६
खीचाधिराजमुद्रिक्तं कृत्वा मुद्रिक्तमाहवे।
तन्नीवृति नृप: प्रोच्चैर्जयस्तम्भमरोपयत्।।
तन्नीवृति नृप: प्रोच्चैर्जयस्तम्भमरोपयत्।।
८७
नृपो निर्जित्य सामन्तघटाभिरुमटादिकान्।
सम्पराये द्विषत्कालानलोज्झालाननीनमत्।।
सम्पराये द्विषत्कालानलोज्झालाननीनमत्।।
८८
परा ये सम्पराये तान्पराजित्य पराक्रमात्।
निर्मथ्य मालवं राज्ञा मालवोऽपि न शेषित:।।
निर्मथ्य मालवं राज्ञा मालवोऽपि न शेषित:।।
८९
मानो मालवमाक्रम्य लब्धमानोन्नति: पुन:।
दिल्लीवल्लभमापृच्छ्य काबिलं जेतुमुद्ययौ।।
दिल्लीवल्लभमापृच्छ्य काबिलं जेतुमुद्ययौ।।
९०
सन्नाहसिंहनादेन व्याकुलीकृतशात्रवा।
चलतोऽनुचचालाऽस्य चमूश्चण्डचमत्कृति:।।
चलतोऽनुचचालाऽस्य चमूश्चण्डचमत्कृति:।।
९१
स गत्वा काबिलं सैन्यरज:शङ्काविलं बली।
द्राक् क्षाममध्वत: सैन्यं द्राक्षाभूमिष्ववासयत्।।
द्राक् क्षाममध्वत: सैन्यं द्राक्षाभूमिष्ववासयत्।।
९२
कोपतस्तोपयन्त्राणि पुरस्कृत्य मदोत्कटा:।
योद्धुमारेभिरे दूरात्पारसीकचमूभटा:।।
योद्धुमारेभिरे दूरात्पारसीकचमूभटा:।।
९३
तोपाटोपपतद्गोलाघातोड्डीनमतङ्गजा।
सञ्चुकोच हतोत्साहा मानसिंहपताकिनी।।
सञ्चुकोच हतोत्साहा मानसिंहपताकिनी।।
९४
अपूर्त्त एव संग्रामे दिवसे पूर्त्तिमीयुषि।
सान्द्रा तमस्तमस्तोमैरुपावर्तत तामसी।।
सान्द्रा तमस्तमस्तोमैरुपावर्तत तामसी।।
९५
वर्वर्ति स्म वशेयस्य सर्वा प्राची मनस्विन:।
असमानमहामान: पठानमसमानकम्।।
असमानमहामान: पठानमसमानकम्।।
९६
मानो मत्वा मृधे म्लेच्छान्दुर्जयान्निर्जरैरपि।
कल्याणकारिणीं काञ्चित्कल्पयामास कल्पनाम्।।
कल्याणकारिणीं काञ्चित्कल्पयामास कल्पनाम्।।
९७
आनाय्य महिषांस्तेषां बद्ध्वा मूद्र्धसु दीपिका:।
कालयामास कालज्ञ: शत्रूनुद्दिश्य सर्वश:।।
कालयामास कालज्ञ: शत्रूनुद्दिश्य सर्वश:।।
९८
द्विषामभिमुखीकृत्य लुलायानिति पार्थिव:।
रणात्तिर्यगपावृत्त्य पृष्ठत: पुनरापतत्।।
रणात्तिर्यगपावृत्त्य पृष्ठत: पुनरापतत्।।
९९
कल्पपावककल्पोऽसौ कल्पयन्व्यूहमर्वताम्।
चुकूर्दम्लेच्छवृन्देषु श्येनो यद्वत्पतत्रिषु।।
चुकूर्दम्लेच्छवृन्देषु श्येनो यद्वत्पतत्रिषु।।
१००
तरवारिस्ततोऽन्योन्यं चचाल चपलोज्ज्वला।
क्षणेन सा रणक्षोणी बभूव क्षतजोक्षिता।।
क्षणेन सा रणक्षोणी बभूव क्षतजोक्षिता।।
१०१
सङ्ग्रामसीम्नि यवना जवना: पवनादपि।
निपेतु: खड्ग_णितिरणितच्छिन्नमस्तका:।।
निपेतु: खड्ग_णितिरणितच्छिन्नमस्तका:।।
१०२
उष्णीषचषकं मुण्डफलाढ्यं रुधिरासवम्।
बभावायोधनक्षेत्रं मृत्यो: पानस्थलं यथा।।
बभावायोधनक्षेत्रं मृत्यो: पानस्थलं यथा।।
१०३
एवं निहत्य यवनानवनीपाकशासन:।
अनाविलयश:स्फूर्त्ति: काबिलादग्रहीत्करम्।।
अनाविलयश:स्फूर्त्ति: काबिलादग्रहीत्करम्।।
१०४
जित्वेति पश्चिमामाशां साहीन्द्रानुमत: पुन:।
पूर्वां कूर्मकुलोत्तंसो जेतुमारभत क्रमात्।।
पूर्वां कूर्मकुलोत्तंसो जेतुमारभत क्रमात्।।
१०५
गजनीपुरनीलोदप्रभृतिप्रभृतायुध:।
वशयित्वा मह: पारावारो वाराणसीं ययौ।
वशयित्वा मह: पारावारो वाराणसीं ययौ।
१०६
बाणवारावृतो बाणैर्जित्वा वाराणसीपतिम्।
भागीरथीतटे मानो निर्ममे मानमन्दिरम्।।
भागीरथीतटे मानो निर्ममे मानमन्दिरम्।।
१०७
तत्र विश्वेश्वरं दृष्ट्वा विश्वविख्यातवैभव:।
मणिकर्ण्यमुपस्पृश्य ददौ दानानि पार्थिव:।।
मणिकर्ण्यमुपस्पृश्य ददौ दानानि पार्थिव:।।
१०८
अथो पपाट पटणापुरं कमठपुङ्गव:।
तत्रापि सिद्धिमापेदे सम्परायप्रसङ्गत:।।
तत्रापि सिद्धिमापेदे सम्परायप्रसङ्गत:।।
१०९
वैकुण्ठपुरनामानं वैकुण्ठादपि सुन्दरम्।
निकायं कल्पयामास तत्र क्षत्रपुरन्दर:।।
निकायं कल्पयामास तत्र क्षत्रपुरन्दर:।।
११०
रयस्मयैर्हयैर्गत्वा गयां वेगादयान्वित:।
चक्रे श्राद्धानि पूर्वेषां श्रद्धालु: पृथिवीपति:।।
चक्रे श्राद्धानि पूर्वेषां श्रद्धालु: पृथिवीपति:।।
१११
ततो ययौ नृपो जेतुमसमानपठानकम्।
जित्वा तद्राज्यमावर्ज्य जगदीशं ददर्श स:।।
जित्वा तद्राज्यमावर्ज्य जगदीशं ददर्श स:।।
११२
जगतीश: प्रतिष्ठाप्य जगदीशं यथाविधि।
व्यधादभीरुरुमरमीरुप्रभृतिकान्वशे।।
व्यधादभीरुरुमरमीरुप्रभृतिकान्वशे।।
११३
मानप्रस्थानमाकर्ण्य कम्पमान: पठानराट्।
भिया ययावकूपारपारमीसनखाँभिध:।।
भिया ययावकूपारपारमीसनखाँभिध:।।
११४
पौरस्त्यविषयानित्थमाक्रामन्क्रमकोविद:।
ब्रह्मपुत्रं प्रतिप्रास्थात्प्रस्थप्रख्यैद्र्विपैर्नृप:।।
ब्रह्मपुत्रं प्रतिप्रास्थात्प्रस्थप्रख्यैद्र्विपैर्नृप:।।
११५
तत्र प्रतापदीपेन्द्रो दुर्गदुर्गमवैभव:।
उत्तस्थौ मानसिंहेन योद्धुं मानधनाग्रणी:।।
उत्तस्थौ मानसिंहेन योद्धुं मानधनाग्रणी:।।
११६
प्रवृत्ते वीरसंहारे सम्प्रहारे परस्परम्।
प्राप प्रतापदीपो द्राक् त्रयोदशशतैरिभै:।।
प्राप प्रतापदीपो द्राक् त्रयोदशशतैरिभै:।।
११७
गर्जता मानसिंहेन दंष्ट्रापितमहासिना।
द्विपा: प्रतापदीपस्य क्षणाज्जग्रसिरे युधि।।
द्विपा: प्रतापदीपस्य क्षणाज्जग्रसिरे युधि।।
११८
करवालकरास्तत्ररणरङ्गधरा नटा:।
सम्मर्दे करिणामस्रकर्दमे च स्खलुर्भटा:।।
सम्मर्दे करिणामस्रकर्दमे च स्खलुर्भटा:।।
११९
श्रीमान्दुर्जनसिंहो यो मानसिंहस्य शावक:।
प्रतापदीपपारीन्द्राञ्जघान घनहुङ्कृति:।।
प्रतापदीपपारीन्द्राञ्जघान घनहुङ्कृति:।।
१२०
गण्डस्थलस्खलद्दानधाराप्लावितरेणव:।
तदीयकुन्तकृत्ताङ्गा व्यचेष्टन्त करेणव:।।
तदीयकुन्तकृत्ताङ्गा व्यचेष्टन्त करेणव:।।
१२१
मानसिंहस्य नासीरवीरो दुर्जनसिंहक:।
सहस्रशो द्विषो हत्वा निपपात व्यसु: क्षितौ।।
सहस्रशो द्विषो हत्वा निपपात व्यसु: क्षितौ।।
१२२
पुरो निपतितं दृष्ट्वा पुत्रं दुर्जनसिंहकम्।
जज्वाल हविषेवाग्रिर्मानसिंहनृप: क्रुधा।।
जज्वाल हविषेवाग्रिर्मानसिंहनृप: क्रुधा।।
१२३
मानसिंहस्य संरम्भदुर्निरीक्ष्याकृते: परै:।
पुन: प्रववृते युद्धं दन्तादन्ति तलातलि।
पुन: प्रववृते युद्धं दन्तादन्ति तलातलि।
१२४
उन्मूलयन्द्विषवृक्षांस्तरस्वी मानमारुत:।
प्रतापदीपमाहत्य दुर्गे तस्य ससार ह।।
प्रतापदीपमाहत्य दुर्गे तस्य ससार ह।।
१२५
राज्ञा प्रतापदीपेन्द्रे दशामन्त्यामवापिते।
शेषतद्बन्धुचित्तेषु प्रावर्तततमान्तम:।।
शेषतद्बन्धुचित्तेषु प्रावर्तततमान्तम:।।
१२६
इति प्रतापदीपं स निर्वाप्य कमठप्रभु:।
महसामेककेदारं केदारं नृपमासदत्।।
महसामेककेदारं केदारं नृपमासदत्।।
१२७
केदारराज्यसीमान्तशालिकेदारभूमिषु।
बलं निवेशयामास कूर्म: क्लान्तहयद्विपम्।।
बलं निवेशयामास कूर्म: क्लान्तहयद्विपम्।।
१२८
विनीतमार्गखेदत्वादाप्यायितबलो बली।
आदिदेश स सामन्तान्योद्धुं केदारभूभृता।।
आदिदेश स सामन्तान्योद्धुं केदारभूभृता।।
१२९
ते द्राक् तमोमिति प्रोच्य करौ सन्नीय तत्पुर:।
प्रभावं वर्णयामासु: केदारस्य विलक्षणम्।।
प्रभावं वर्णयामासु: केदारस्य विलक्षणम्।।
१३०
श्रुतमस्माभिरस्यास्ते गृहे शक्ति: शिलामयी।
राजन् रणे तया गुप्तो न पराजीयते परै:।।
राजन् रणे तया गुप्तो न पराजीयते परै:।।
१३१
तदत्र प्रतिकर्तव्यं विचारयत साम्प्रतम्।
अन्यथा नैव जेष्यामोऽस्याऽमोघं मन्महे मह:।।
अन्यथा नैव जेष्यामोऽस्याऽमोघं मन्महे मह:।।
१३२
एवं विज्ञापितो राजा बाहुजैर्बाहुशालिभि:।
भक्त्या शिलामयीं देवीमुपतस्थे स्तवैर्निशि।।
भक्त्या शिलामयीं देवीमुपतस्थे स्तवैर्निशि।।
१३३
उच्चावचै: स्तवै: स्तुत्वा देवीं देव: शिलामयीम्।
सुष्वाप प्रयत: पृथ्व्यां कुशशय्यायुजि क्षणम्।।
सुष्वाप प्रयत: पृथ्व्यां कुशशय्यायुजि क्षणम्।।
१३४
स्वप्ने शिलामयी माया देवदायादजित्वरा।
मानं सम्मानयामास भक्तभद्रकृतत्वरा।।
मानं सम्मानयामास भक्तभद्रकृतत्वरा।।
१३५
इत: पुनर्निकायस्थ: कायस्थकुलजो नृप:।
शिलामयीं समानर्च महाराजजिगीषया।।
शिलामयीं समानर्च महाराजजिगीषया।।
१३६
तदानीं तत्र तन्वन्ती तदीयतनयातनुम्।
अर्चां विघट्टयामास महामाया शिलामयी।।
अर्चां विघट्टयामास महामाया शिलामयी।।
१३७
तां मत्वा स्वां सुतां दुष्टो दुष्टाऽसीति विगर्हयन्।
निषिषेध प्रसह्य त्रिस्त्वमितोऽपसरेति स:।।
निषिषेध प्रसह्य त्रिस्त्वमितोऽपसरेति स:।।
१३८
इति निर्भर्सिता व्याजतनुजा व्याजहार तम्।
स्नपयन्ती स्मितज्योतस्नासुधाभिर्वसुधां पुर:।।
स्नपयन्ती स्मितज्योतस्नासुधाभिर्वसुधां पुर:।।
१३९
स्मरस्यद: प्रतिज्ञातं यन्मया त्वत्पुर: पुरा।
वक्तासि त्रि:प्रयाहीति त्यक्ष्यामि त्वां ध्रुवं तदा।।
वक्तासि त्रि:प्रयाहीति त्यक्ष्यामि त्वां ध्रुवं तदा।।
१४०
तद्गच्छामि पलायस्व यदि जीवितुमिच्छसि।
इत्यादिश्य वपुस्थेन्द्रं तिरोधात्सा शिलामयी।।
इत्यादिश्य वपुस्थेन्द्रं तिरोधात्सा शिलामयी।।
१४१
देव्यामन्तर्हितायां स केदार: क्रोधमूर्च्छित:।
शिलामयीं शिलाबुद्ध्या मज्जयामास सागरे।।
शिलामयीं शिलाबुद्ध्या मज्जयामास सागरे।।
१४२
अन्येद्यु: कमठेन्द्रस्य युद्धोद्योगं निषम्य स:।
समुद्रवर्त्मना भीतो नावा क्वापि पलायत।।
समुद्रवर्त्मना भीतो नावा क्वापि पलायत।।
१४३
कन्यां तस्य पुरस्कृत्य धन्यां रूपेण मन्त्रिण:।
अभिमानं त्यजन्तो द्रागभिमानं समभ्ययु:।।
अभिमानं त्यजन्तो द्रागभिमानं समभ्ययु:।।
१४४
प्रविश्य कच्छकटकं ते बद्धाञ्जलिसम्पुटा:।
विजिज्ञपु: शनैरम्बावतीनगरनायकम्।।
विजिज्ञपु: शनैरम्बावतीनगरनायकम्।।
१४५
सन्धानमिच्छु: कच्छेन्द्र त्वया केदारपार्थिव:।
उपढौकयति प्रह्व: स्वात्मजां तद्गृहाण भो:।।
उपढौकयति प्रह्व: स्वात्मजां तद्गृहाण भो:।।
१४६
पिञ्जरीकृतवक्षोजां कुङ्कुमै: किन्नरीस्वनाम्।
किं करीन्द्रगतिं नैनां किङ्करीकुरुषे प्रभो।।
किं करीन्द्रगतिं नैनां किङ्करीकुरुषे प्रभो।।
१४७
इत्थमभ्यर्थितो देवो मुमुदे स मुहुर्मुहु:।
अप्रत्नं प्रमदारत्नं धत्ते कस्य न सम्मदम्।।
अप्रत्नं प्रमदारत्नं धत्ते कस्य न सम्मदम्।।
१४८
समानयत केदारमित्यादिश्य सतान्स्वयम्।
शिलामयीं नमस्कुर्वन्निदद्रौ प्रयतो नृप:।।
शिलामयीं नमस्कुर्वन्निदद्रौ प्रयतो नृप:।।
१४९
त्रिशूलशालिनीमुण्डमालिनीभक्तपालिनी।
उवाच मानमानन्दमयी स्वप्ने शिलामयी।।
उवाच मानमानन्दमयी स्वप्ने शिलामयी।।
१५०
भावेन ते प्रसन्नाऽहं सन्नाहङ्कृतयो द्विष:।
मग्रामप्रतिमां सिन्धौ प्रतिमां मे समुद्धर।।
मग्रामप्रतिमां सिन्धौ प्रतिमां मे समुद्धर।।
१५१
कूर्मेन्द्र त्वत्कुले यावल्लप्स्ये नित्यमजं बलिम्।
तावत्स्थास्यामि ते राज्ये सत्यं विद्धि वचो मम।।
तावत्स्थास्यामि ते राज्ये सत्यं विद्धि वचो मम।।
१५२
इत्थमम्बावतीनाथं जगदम्बा शिलामयी।
साग्रहं साऽनुजग्राह भाववश्या हि देवता:।।
साग्रहं साऽनुजग्राह भाववश्या हि देवता:।।
१५३
प्रात: प्रोत्थाय देवो द्रागुधृत्याब्धे: शिलामयीम्।
न्ययुंक्त पूजने तस्या बङ्गान्ब्राह्मणसत्तमान्।।
न्ययुंक्त पूजने तस्या बङ्गान्ब्राह्मणसत्तमान्।।
१५४
वार्द्धिद्वीपादथाहूतो दूतैर्योगचिकीर्षया।
दारै: सम्मन्त्र्य केदारो ददौ राज्ञे स्वदारिकाम्।।
दारै: सम्मन्त्र्य केदारो ददौ राज्ञे स्वदारिकाम्।।
१५५
एवं विवाहितोदारदार: केदारसत्कृत:।
शिलामयीमयी सोऽञ्चन् रोहीतासमयात्स्मयात्।।
शिलामयीमयी सोऽञ्चन् रोहीतासमयात्स्मयात्।।
१५६
केचिदाहु: शिलादेव्या वञ्चित: स वपुस्थप:।
मानसिंहं ययौ योद्धुं सिंहं कुम्भीव कोपत:।।
मानसिंहं ययौ योद्धुं सिंहं कुम्भीव कोपत:।।
१५७
अस्त्रप्रयोगसंहारविस्मापितपरस्परम्।
जजृम्भे कूर्मकायस्थराजयोर्जन्यमुच्चकै:।।
जजृम्भे कूर्मकायस्थराजयोर्जन्यमुच्चकै:।।
१५८
अस्त्राण्यस्त्रै: समुत्सार्य भगवद्दाससम्भव:।
तङ्ग्राममूर्घ्निमूर्द्धानं केदारस्य चकर्त्त स:।।
तङ्ग्राममूर्घ्निमूर्द्धानं केदारस्य चकर्त्त स:।।
१५९
कायस्थस्थपतिं हत्वा शिलादेवीं नयन्नयम्।
अम्बावतीमगादत्र कथाभेदोऽप्ययं स्थित:।।
अम्बावतीमगादत्र कथाभेदोऽप्ययं स्थित:।।
१६०
प्रस्तौमि प्रस्तुतं सोऽथ वपुस्थेन विसर्जित:।
वाहिनीं वाहयामास रोहीतासजिगीषया।।
वाहिनीं वाहयामास रोहीतासजिगीषया।।
१६१
तटिनीशतटेनाऽटन्दर्शं दर्शं महाटवी:।
रोहीतासं हयारोहैर्मोहितारी रुरोध स:।।
रोहीतासं हयारोहैर्मोहितारी रुरोध स:।।
१६२
संग्रामस्तत्र तस्यासीत्कबन्धारब्धताण्डव:।
निर्यदस्रनदीपूरमाञ्जिष्ठीकृतसागर:।।
निर्यदस्रनदीपूरमाञ्जिष्ठीकृतसागर:।।
१६३
विरुद्ध्य विद्विषां योधैर्यो धैर्यनिलयो नृप:।
दुर्गं दुर्गममप्यन्यै रोहीतासं रुरोह ह।।
दुर्गं दुर्गममप्यन्यै रोहीतासं रुरोह ह।।
१६४
रोहीतासं वशे कृत्वाऽवशेषविषयान्वशी।
क्रामं क्रामं स विक्रान्त: क्रमादापदपाम्पतिम्।।
क्रामं क्रामं स विक्रान्त: क्रमादापदपाम्पतिम्।।
१६५
एवं पुरं दरदिशं जित्वा राजपुरन्दर:।
उद्वेल्लद्वीचिवाचालं लुलोकेऽभ्यर्णमर्णवम्।।
उद्वेल्लद्वीचिवाचालं लुलोकेऽभ्यर्णमर्णवम्।।
१६६
हेलाहताहितो हन्त वेलासीम्नि स नीरधे:।
न्यवेशयद्वले प्रेङ्खत्पञ्चरङ्गध्वजाञ्चलम्।।
न्यवेशयद्वले प्रेङ्खत्पञ्चरङ्गध्वजाञ्चलम्।।
१६७
तुरङ्गमतरङ्गौघ: करीन्द्रमकराकुल:।
जगर्ज ध्वजिनीव्यूहो द्वितीय इव सागर:।।
जगर्ज ध्वजिनीव्यूहो द्वितीय इव सागर:।।
१६८
तन्यमानपटावासं मृज्यमानरथादिकम्।
क्रियमाणार्णवस्नानं क्रमाद्बलमवातरत्।।
क्रियमाणार्णवस्नानं क्रमाद्बलमवातरत्।।
१६९
सैन्येषु सन्निविष्टेषु निर्वर्तितभुजिक्रिय:।
विजहार यथाकाममधिवेलमिलापति:।।
विजहार यथाकाममधिवेलमिलापति:।।
१७०
तरणौ त्यक्ततारुण्ये दिदृक्षु: सागरच्छविम्।
अच्छाच्छवालुके कच्छ: कच्छरोधस्युपाविशत्।।
अच्छाच्छवालुके कच्छ: कच्छरोधस्युपाविशत्।।
१७१
परिवार्योपविविशु: सामन्तास्तं समन्तत:।
स्फुरद्वज्रचमत्कारं लेखा लेखर्षभं यथा।।
स्फुरद्वज्रचमत्कारं लेखा लेखर्षभं यथा।।
१७२
कुत्रापि भङ्गमप्राप्ता जडसङ्गविवर्जिता।
अपङ्किलमहाकच्छा सागरं साऽहसत्सभा।।
अपङ्किलमहाकच्छा सागरं साऽहसत्सभा।।
१७३
तत्र द्वीपान्तरात्कोऽपि प्रणिधि: प्रतिपक्षिणाम्।
ससार सारजिज्ञासुर्मानदं मानमानत:।।
ससार सारजिज्ञासुर्मानदं मानमानत:।।
१७४
भ्राजमानं श्रिया मानं साभिमानं प्रणम्य स:।
निषसादोपदाव्याजविनुह्नितनिजाशय:।।
निषसादोपदाव्याजविनुह्नितनिजाशय:।।
१७५
राजाऽप्यस्याशयं बुध्वा सावज्ञमुपदा: स्पृशन्।
वार्तां निर्वर्त्य करगमौज्झदब्जमुदन्वति।।
वार्तां निर्वर्त्य करगमौज्झदब्जमुदन्वति।।
१७६
आज्ञाशक्तिं स्फुटीकर्त्तुं स कुतूहलकैतवात्।
आनयध्वमिदं पुष्पं सामन्तानित्थमादिशत्।।
आनयध्वमिदं पुष्पं सामन्तानित्थमादिशत्।।
१७७
आदिशत्यब्जमानेतुं माने तुङ्गपराक्रमे।
विविशुर्बाहुजा वाद्धर्वाहवप्रौढबाहव:।।
विविशुर्बाहुजा वाद्धर्वाहवप्रौढबाहव:।।
१७८
तदाज्ञासमकालं द्राग्बध्वा परिकरं नृपा:।
निपेतु: प्रौढपाठीनदुर्गमे सागरोदरे।।
निपेतु: प्रौढपाठीनदुर्गमे सागरोदरे।।
१७९
ते वारणकराकारबाहुवारितमद्गुरा:।
तेरुस्तोयधिमग्रेहमग्रेहमितिवादिन:।।
तेरुस्तोयधिमग्रेहमग्रेहमितिवादिन:।।
१८०
केऽप्यावर्तेष्ववर्तन्त परे पाठीनकुक्षिषु।
राज्ञोऽग्रे केऽपि तन्निन्यु: सारसंसारसम्भृता:।।
राज्ञोऽग्रे केऽपि तन्निन्यु: सारसंसारसम्भृता:।।
१८१
चित्रं तच्चरितं प्रेक्ष्य चिरं चारस्य मुह्यत:।
आतङ्कविस्मयाभ्यां द्राक्सञ्चारोऽरचि चेतसि।।
आतङ्कविस्मयाभ्यां द्राक्सञ्चारोऽरचि चेतसि।।
१८२
तत्तादृक्साहसं दृष्ट्वा प्राह सन्नमनाश्चर:।
गन्तुं मामनुमन्यध्वं गृहानिति नृपं नत:।।
गन्तुं मामनुमन्यध्वं गृहानिति नृपं नत:।।
१८३
विज्ञापितो मुहुस्तेन विज्ञाताऽवनिनायक:।
तं विसर्ज्य समुत्तस्थौ सायं कर्मविधित्सया।।
तं विसर्ज्य समुत्तस्थौ सायं कर्मविधित्सया।।
१८४
अप्रमाणान्यनीकानि पश्यन्सज्जानि पङ्क्तिश:।
साध्वसोन्निद्ररोमाञ्च: स्पशेन्द्र: सोऽपलायत।।
साध्वसोन्निद्ररोमाञ्च: स्पशेन्द्र: सोऽपलायत।।
१८५
गतेन तेन सपदि प्रत्यबोधि निजो नृप:।
सोऽपि कच्छकथां श्रुत्वा तूष्णीं तस्थौ भयाशय:।।
सोऽपि कच्छकथां श्रुत्वा तूष्णीं तस्थौ भयाशय:।।
१८६
निर्विश्य धैर्यहसितसागर: सागरश्रियम्।
निवर्तते स्म मानोऽपि श्रीमानम्बावतीं प्रति।।
निवर्तते स्म मानोऽपि श्रीमानम्बावतीं प्रति।।
१८७
अम्बावतीं नृप: प्राप्य जगदम्बासहायवान्।
शिल्पिभि: कारयामास शिलादेव्या निकेतनम्।।
शिल्पिभि: कारयामास शिलादेव्या निकेतनम्।।
१८८
संस्कृत्य स्थापयामास शिलादेवीं स मन्दिरे।
स्थापितामनु तां तस्य विभवो ववृधेऽधिकम्।।
स्थापितामनु तां तस्य विभवो ववृधेऽधिकम्।।
१८९
तदा प्रभृति कच्छानां नगरी स्वच्छनागरा।
अम्बावतीति विख्यातिमन्वर्थां दधती बभौ।।
अम्बावतीति विख्यातिमन्वर्थां दधती बभौ।।
१९०
अथो दिनेषु गच्छत्सु कच्छेन्द्रोऽगच्छदेकदा।
दिल्लीमर्कवराहूत: कर्षन्नुच्चै: पताकिनीम्।।
दिल्लीमर्कवराहूत: कर्षन्नुच्चै: पताकिनीम्।।
१९१
सम्राडर्कवरो वीक्ष्य मानमानतमन्तिके।
वार्त्तं सादरमापृच्छ्य व्याहर्त्तंमुपचक्रमे।।
वार्त्तं सादरमापृच्छ्य व्याहर्त्तंमुपचक्रमे।।
१९२
श्रूयतां भो महाराज दक्षिणस्यां वरारके।
युद्ध्यत: खानखानस्य व्यतीयु: पञ्चहायना:।।
युद्ध्यत: खानखानस्य व्यतीयु: पञ्चहायना:।।
१९३
तथापि नो समजनि जयो हन्त मनागपि।
तत्तत्र गच्छ कच्छेन्द्र त्वदेकगतयो वयम्।।
तत्तत्र गच्छ कच्छेन्द्र त्वदेकगतयो वयम्।।
१९४
इत्थमाभाष्य साहीन्द्रो राज्ञे सत्कारमाचरन्।
केसरीन्द्रमुखाकारं हैममुच्चैर्ध्वजं ददौ।।
केसरीन्द्रमुखाकारं हैममुच्चैर्ध्वजं ददौ।।
१९५
पारितोषं समादाय पृथवीपाकशासन:।
दक्षिणो वीरविद्यासु दक्षिणाभिमुखो ययौ।।
दक्षिणो वीरविद्यासु दक्षिणाभिमुखो ययौ।।
१९६
पुर: पयांसि सेनाभि: कुर्वन्यङ्कानि पृष्ठत:।
प्रजावृन्दावनो राजा श्रीवृन्दावनमासदत्।।
प्रजावृन्दावनो राजा श्रीवृन्दावनमासदत्।।
१९७
तत्र नक्तं शयानाय स्वप्ने कूर्मविडौजसे।
स्वरूपं दर्शयामास गोविन्दो भक्तवत्सल:।।
स्वरूपं दर्शयामास गोविन्दो भक्तवत्सल:।।
१९८
जापयिष्यामि जन्ये त्वां सौधमुच्चै: कुरुष्व मे।
एवमाज्ञाप्य भगवान्भूपमन्तरधीयत।।
एवमाज्ञाप्य भगवान्भूपमन्तरधीयत।।
१९९
स प्रात: स्मृतदृष्टान्तो दृष्टान्तो युधि विद्विषाम्।
जगाम यत्र गोविन्दप्रतिमा स्म विराजते।।
जगाम यत्र गोविन्दप्रतिमा स्म विराजते।।
२००
नृप: सान्द्रघनश्यामं मुरलीचुम्बिताधरम्।
गोविन्दमरविन्दाक्षं विन्दन्निन्दन्नवन्दत।।
गोविन्दमरविन्दाक्षं विन्दन्निन्दन्नवन्दत।।
२०१
नत्वा गोविन्दमुर्वीन्द्रो गुर्वीं कृत्वा स्तुतिं मुहु:।
मन्दिरं कारयामास वृन्दाविपिनचन्दिरम्।।
मन्दिरं कारयामास वृन्दाविपिनचन्दिरम्।।
२०२
सौधेऽसौ धेनुचित्रे तं प्रतिष्ठाप्य यथागमम्।
ययौ व्रजभुवं पश्यन्मथुरामथ राजघ:।।
ययौ व्रजभुवं पश्यन्मथुरामथ राजघ:।।
२०३
विश्रान्तस्तत्र विश्रान्तघाटे माथुरमण्डिते।
ददौ दानानि स स्नात्वा सलिले शमनस्वसु:।।
ददौ दानानि स स्नात्वा सलिले शमनस्वसु:।।
२०४
सङ्कलय्याऽथ कटकं भटकम्पितभल्लकम्।
राजा जट्टं जयन्नाजावाजगाम निजं पुरम्।।
राजा जट्टं जयन्नाजावाजगाम निजं पुरम्।।
२०५
नत्वा शिलामयीमम्बां प्रास्थाच्छम्बायुधी नृणाम्।
अम्बावतीपरिसरानैभैर्जम्बालयन्मदै:।।
अम्बावतीपरिसरानैभैर्जम्बालयन्मदै:।।
२०६
उन्नेत्रराजिभी राजा पौरैश्चुलुकितच्छवि:।
प्रतस्थेऽगस्त्यहरितं साहीन्द्रहितकाम्यया।।
प्रतस्थेऽगस्त्यहरितं साहीन्द्रहितकाम्यया।।
२०७
प्रतिष्ठमाने विजयाय माने
योऽभूद्भटानां ध्वनिरुद्भटानाम्।
प्रदिक्षिणीकृत्य स दक्षिणाशां
समाधिभेत्ताऽजनि कुम्भयोने:।।
योऽभूद्भटानां ध्वनिरुद्भटानाम्।
प्रदिक्षिणीकृत्य स दक्षिणाशां
समाधिभेत्ताऽजनि कुम्भयोने:।।
२०८
स तापतीतीरमुपेत्य भूपति:
प्रनर्त्तितानोकहपङ्क्तिमारुतै:।
निवेशयामास बलं वलम्बित-
क्लमं क्रमक्रान्तपथो महारथ:।।
प्रनर्त्तितानोकहपङ्क्तिमारुतै:।
निवेशयामास बलं वलम्बित-
क्लमं क्रमक्रान्तपथो महारथ:।।
२०९
विदारयन्ती प्रतिकूलभूभृत:
प्रतिक्षणोल्लासितरङ्गसङ्गिनी।
समुच्छलत्कूर्मकुलाकुलाशया
शनै: शनै: साऽवततार वाहिनी।।
प्रतिक्षणोल्लासितरङ्गसङ्गिनी।
समुच्छलत्कूर्मकुलाकुलाशया
शनै: शनै: साऽवततार वाहिनी।।
२१०
परेद्युरुर्त्तीर्य स तापतीं हयै:
करस्फुरन्नग्रकृपाणभीषण:
जघान वेगेन भरोनपत्तनो-
पकण्ठमासाद्य बलानि विद्विषाम्।।
करस्फुरन्नग्रकृपाणभीषण:
जघान वेगेन भरोनपत्तनो-
पकण्ठमासाद्य बलानि विद्विषाम्।।
२११
ततो बराडं विघटय्य विक्रमी
जवादजैषीत्पुनरेलचं पुरम्।
विशिष्य लोकोत्तरभाग्यशालिनां
जयो न जातु व्यभिचारमृच्छति।।
जवादजैषीत्पुनरेलचं पुरम्।
विशिष्य लोकोत्तरभाग्यशालिनां
जयो न जातु व्यभिचारमृच्छति।।
२१२
विजित्य काष्ठामिति कौम्भसम्भवीं
शशाम तत्रैव स हन्त पार्थिव:
शुचेर्दशम्यां शकले शुचिच्छवौ
क्षमां क्षमाभृद्रसचन्द्रवत्सरे।।
शशाम तत्रैव स हन्त पार्थिव:
शुचेर्दशम्यां शकले शुचिच्छवौ
क्षमां क्षमाभृद्रसचन्द्रवत्सरे।।
२१३
समा: स मानो ननु पञ्चविंशतिं
समांशकान्पञ्चदिनानि विंशतिम्।
प्रजा: प्रशास्य स्वरवाप पुष्यवान्
महामुने: पीतपयोनिधेर्दिशि।।
समांशकान्पञ्चदिनानि विंशतिम्।
प्रजा: प्रशास्य स्वरवाप पुष्यवान्
महामुने: पीतपयोनिधेर्दिशि।।
२१४
स्त्रियश्चतस्रश्चतुरस्ररोचिष-
स्तमन्वयुस्तत्र पतिं पतिव्रता:।
इत: पुन: पञ्च मिषत्सु बन्धुषु
चिताध्वनाऽम्बावतिकागता गता:।।
स्तमन्वयुस्तत्र पतिं पतिव्रता:।
इत: पुन: पञ्च मिषत्सु बन्धुषु
चिताध्वनाऽम्बावतिकागता गता:।।
२१५
अन्वीयुरेवं नव तं महिष्यो
नवैव तस्मात्प्रथमं विषेदु:।
शेषा नमस्कृत्य सुतैर्निषिद्धा
वैधव्यदीक्षाविधिमन्वतिष्ठन्।।
नवैव तस्मात्प्रथमं विषेदु:।
शेषा नमस्कृत्य सुतैर्निषिद्धा
वैधव्यदीक्षाविधिमन्वतिष्ठन्।।
२१६
येनेश्वराय जगदीशपदं प्रदत्तं
गोविन्ददेवविभवे भवनं च दत्तम्
स प्रातरेव गृणतां गुणलाभरम्य:
श्रीमानसिंहमहिमा न हि मानगम्य:।।
गोविन्ददेवविभवे भवनं च दत्तम्
स प्रातरेव गृणतां गुणलाभरम्य:
श्रीमानसिंहमहिमा न हि मानगम्य:।।
२१७
दाता वीरोऽतिधीरो निपुणमधुरगीर्धर्मकर्माप्तशर्मा
भासां राशि: शुभाशी: प्रवरतरगुणग्रामभूमिर्यशस्वी।
सद्भक्तिव्यक्तियुक्तो हरिपदकमले सर्वश: कच्छपानां
सुत्रामा मानसिंहो जगति समजनि श्रीमहाराजसंज्ञ:।।
भासां राशि: शुभाशी: प्रवरतरगुणग्रामभूमिर्यशस्वी।
सद्भक्तिव्यक्तियुक्तो हरिपदकमले सर्वश: कच्छपानां
सुत्रामा मानसिंहो जगति समजनि श्रीमहाराजसंज्ञ:।।
२१८
यद्राज्ये सुखिनो बभूवुरखिलक्षोणीजना: सर्वतो
यस्तं काबिलमप्यगम्यमितरैर्जित्वाऽनयत्स्वे वशे।
य: शश्वन्निविडीचकार चरणैर्धर्मं चतुर्भि: कलौ
सोऽयं माननृप: स्तुतो भुवि न कै: साहीन्द्रगीतस्तुति:।।
यस्तं काबिलमप्यगम्यमितरैर्जित्वाऽनयत्स्वे वशे।
य: शश्वन्निविडीचकार चरणैर्धर्मं चतुर्भि: कलौ
सोऽयं माननृप: स्तुतो भुवि न कै: साहीन्द्रगीतस्तुति:।।
२१९
कीर्त्ति: स्वर्गतरङ्गिणी सुविशदा श्रीमानसिंहप्रभो:
प्रोद्यच्छत्रुकदम्बहृद्गिरिवरान्संदारयन्ती रयात्।
उच्चैस्तच्चरिताब्जपुञ्जपरमोल्लासा जगत्पाविनी
शक्तिस्तोमजलावहा त्रिजगतीमुल्लङ्घ्य दूरं गता।।
प्रोद्यच्छत्रुकदम्बहृद्गिरिवरान्संदारयन्ती रयात्।
उच्चैस्तच्चरिताब्जपुञ्जपरमोल्लासा जगत्पाविनी
शक्तिस्तोमजलावहा त्रिजगतीमुल्लङ्घ्य दूरं गता।।
२२०
मातुं मानमहांस्यतीव न गुरु: प्रौढोऽपि सन्स्वर्गुरु:
सा गीर्गायति किन्तु नान्तमयते काव्यस्य कक्षा कुत:।
वल्मीद्वीपभवौ कवी तु जरठौ का मादृशानां कथा
यत्सङ्ख्याकलनक्रियासु विकल: शेषोऽपि शिष्यायते।।
सा गीर्गायति किन्तु नान्तमयते काव्यस्य कक्षा कुत:।
वल्मीद्वीपभवौ कवी तु जरठौ का मादृशानां कथा
यत्सङ्ख्याकलनक्रियासु विकल: शेषोऽपि शिष्यायते।।
२२१
एवं माननृपे वितत्य ककुभामन्तेषु कीर्त्ति निजां
नाकं गच्छति कच्छवंशतिलके साकं कलत्रैरहो।
श्रीदिल्लीदयितेन दत्तमिरजाराजप्रशस्तिर्महा-
नध्यम्बावति भूपति: समभवच्छ्रीभावसिंह: स्वयम्।।
नाकं गच्छति कच्छवंशतिलके साकं कलत्रैरहो।
श्रीदिल्लीदयितेन दत्तमिरजाराजप्रशस्तिर्महा-
नध्यम्बावति भूपति: समभवच्छ्रीभावसिंह: स्वयम्।।
२२२
धर्मे यस्य मतिर्मनो भगवत: पादारविन्दद्वये
देहो यस्य परोपकारकुशलो दानाय भूति: पुन:।
वाणी यस्य हरेरभूत्स्तुतिषु स श्रीमानराजात्मजो
दौहित्र: क्षितिपश्चचन्द चरम: श्रीरायमल्लेशितु:।।
देहो यस्य परोपकारकुशलो दानाय भूति: पुन:।
वाणी यस्य हरेरभूत्स्तुतिषु स श्रीमानराजात्मजो
दौहित्र: क्षितिपश्चचन्द चरम: श्रीरायमल्लेशितु:।।
२२३
यस्य प्रचण्डतरवारिहतैद्र्विषद्भि:
संदर्शिता समरसीमनि पृष्ठलक्ष्मी:।
विद्विष्टदारनयनाश्रुमयार्णवोद्यत्-
कीर्तीन्दुरत्र जयति स्म स भावभूप:।।
संदर्शिता समरसीमनि पृष्ठलक्ष्मी:।
विद्विष्टदारनयनाश्रुमयार्णवोद्यत्-
कीर्तीन्दुरत्र जयति स्म स भावभूप:।।
२२४
अन्योक्तिदर्शितरसं रसवीतिहोत्र-
रात्रीशवृत्तरुचि भावविलासकाव्यम्।
विद्याविलाससुतरुद्रकवीश्वरेण
भावस्य भावमधिगम्य विधीयते स्म।।
रात्रीशवृत्तरुचि भावविलासकाव्यम्।
विद्याविलाससुतरुद्रकवीश्वरेण
भावस्य भावमधिगम्य विधीयते स्म।।
२२५
भाव: स्वभावचतुरश्चतुरस्रकीर्ति-
र्वर्षाणि सप्तपृथिवीं पृथुधी: प्रशास्य।
वस्वद्रिषड्विधुशरद्यधितैष्यमच्छे
खण्डे तिथौ पितृपते: पितृलोकमाप।।
र्वर्षाणि सप्तपृथिवीं पृथुधी: प्रशास्य।
वस्वद्रिषड्विधुशरद्यधितैष्यमच्छे
खण्डे तिथौ पितृपते: पितृलोकमाप।।
२२६
इत्थं समुन्मिषति भावविभोरभावे
भूपो बभूव विजयी जयसिंहवर्मा।
योऽम्बावतीं प्रभवताऽर्कवरेण दत्तां
द्यौसात एत्य मघवेव दिवं जुगोप।।
भूपो बभूव विजयी जयसिंहवर्मा।
योऽम्बावतीं प्रभवताऽर्कवरेण दत्तां
द्यौसात एत्य मघवेव दिवं जुगोप।।
२२७
बभूव भावप्रतियोगितां नृपे स्पृशत्यभावप्रतियोगिवर्मणि।
जयो महासिंहसमुद्रचन्द्रमा: पटु: प्रजाशर्मविधानकर्मणि।।
जयो महासिंहसमुद्रचन्द्रमा: पटु: प्रजाशर्मविधानकर्मणि।।
२२८
श्रीमत्कुन्दननन्दनवैद्यश्रीकृष्णरामकविकलिते
काव्येऽत्र कच्छवंशे पूत्तिमगादष्टम: सर्ग:।।
***
१
जयसिंहं प्रकृतय: स्थितमम्बावतीपदे।
अभ्यषिञ्चन्यथाम्नायमुज्ज्वलै: स्वर्धुनीजलै:।।
अभ्यषिञ्चन्यथाम्नायमुज्ज्वलै: स्वर्धुनीजलै:।।
२
चामरोद्वीज्यमानश्रीर्नयरीतिविचक्षण:।
आवर्जयज्जयो राजा जयोदयमयो महीम्।।
आवर्जयज्जयो राजा जयोदयमयो महीम्।।
३
अकलङ्क: कलापूर्ण: स्फीत: पक्षद्वयेऽपि स:।
क्षत्रराजोऽधिकं रेजे रुचा नक्षत्रराजत:।।
क्षत्रराजोऽधिकं रेजे रुचा नक्षत्रराजत:।।
४
अन्ये ये केऽपि सिंहास्ते जयहीना जगत्तले।
एकं तमेव नृपतिं जयसिंहं जगुर्जना:।।
एकं तमेव नृपतिं जयसिंहं जगुर्जना:।।
५
जित्वा दिश: समानीतैरुपहारै: समर्चयत्।
उच्चै: शिलामयीमम्बां पुरीमम्बावतीं च स:।।
उच्चै: शिलामयीमम्बां पुरीमम्बावतीं च स:।।
६
अम्बावती जये राज्ञि प्रतिसद्म ततातता।
बभौ समृद्धसामन्तक्रियमाणगतागता।।
बभौ समृद्धसामन्तक्रियमाणगतागता।।
७
रणक्षेत्रेष्वविश्रान्तं शरधारा ववर्ष स:।
चित्रं पुनरमित्राणां गृहेषु तृणजन्म यत्।।
चित्रं पुनरमित्राणां गृहेषु तृणजन्म यत्।।
८
यस्य मार्तण्डचण्डेषु तेजस्सु प्रज्वलत्स्वलम्।
तम: सम्भूय सहसा निलिल्ये द्विषतां हृदि।।
तम: सम्भूय सहसा निलिल्ये द्विषतां हृदि।।
९
चतुर्जलधिवेलान्तवृक्षवाटीविकासितम्।
उच्चैरुत्तंसयन्ते यत्कीर्तिपुष्पं दिगङ्गना:।।
उच्चैरुत्तंसयन्ते यत्कीर्तिपुष्पं दिगङ्गना:।।
१०
सकृतपरिचयप्रीतसम्राडर्कवराग्रहात्।
गतागतमभूदस्य दिल्ल्यां पुरि मुहुर्मुहु:।।
गतागतमभूदस्य दिल्ल्यां पुरि मुहुर्मुहु:।।
११
शुभोदयो महाकेतुरमन्दश्री: शनैश्चर:।
य: प्रधानं नृणां खड्गी प्रमदेद्धो मदोज्झित:।।
य: प्रधानं नृणां खड्गी प्रमदेद्धो मदोज्झित:।।
१२
इन्द्रध्वजमिवात्युच्चैर्यश:ख्यातिसमुच्छ्रितम्।
प्रजा: प्रजातहर्षास्तं स्तवै: समुपतस्थिरे।।
प्रजा: प्रजातहर्षास्तं स्तवै: समुपतस्थिरे।।
१३
षडस्य जज्ञिरे जायास्तास्वाद्या तु मृगावती।
इन्द्रदुर्गेन्द्रराष्ट्रोढरायसिंहस्य या सुता।।
इन्द्रदुर्गेन्द्रराष्ट्रोढरायसिंहस्य या सुता।।
१४
सुता केशवदासस्य जादमान्वयजन्मन:।
जाने जयस्य भूजाने: स्त्रीराजकुँवराऽवरा।।
जाने जयस्य भूजाने: स्त्रीराजकुँवराऽवरा।।
१५
राजानं राजकुँवरा कलयन्ती कलागुणै:।
एकामसूत तनुजां जातमात्रां ममार सा।।
एकामसूत तनुजां जातमात्रां ममार सा।।
१६
सीसादनगराजस्य तनुजा तनुमध्यमा।
भूपते रूपकँवरा तृतीया महिषी मता।।
भूपते रूपकँवरा तृतीया महिषी मता।।
१७
तुर्या बीकावती कान्ता कृष्णसिंहभवा प्रभो:।
हरिसिंह: सुतो यस्या बाल एव व्यपद्यत।।
हरिसिंह: सुतो यस्या बाल एव व्यपद्यत।।
१८
चाहमाणचणा काचिदानन्दकुँवराऽप्यभूत्।
या करोलीपते: पुत्रीश्यामदासस्य कीर्तिता।।
या करोलीपते: पुत्रीश्यामदासस्य कीर्तिता।।
१९
राजानं रञ्जयित्वा या कञ्जमञ्जुविलोचना।
दापयामास राणोलीं पुरं पित्रे पुरुश्रियम्।।
दापयामास राणोलीं पुरं पित्रे पुरुश्रियम्।।
२०
नृपप्रसङ्गमासाद्य मासस्नाता क्षणादसौ।
कच्छेन्द्रकुलविच्छित्यै स्वच्छं गर्भमविन्दत।।
कच्छेन्द्रकुलविच्छित्यै स्वच्छं गर्भमविन्दत।।
२१
या प्रकृत्यैव रोचिष्णु: पुनस्तद्गर्भरोचिता।
दौहृदाप्तिचमत्कारानञ्चती रुरुचे चिरम्।।
दौहृदाप्तिचमत्कारानञ्चती रुरुचे चिरम्।।
२२
दृगङ्करसभूवर्षे भाद्रे कृष्णे तिथावहे:।
आनन्दकुँवराकुक्षौ रामसिंहजनुर्ननु।।
आनन्दकुँवराकुक्षौ रामसिंहजनुर्ननु।।
२३
गतासु ताननाडीषु मिहिरोदयतो निशि।
नक्षत्रे भरणीसंज्ञे धरणीशसुतोद्भव:।।
नक्षत्रे भरणीसंज्ञे धरणीशसुतोद्भव:।।
२४
धने कविकुजौ ज्ञेनशिखीज्या: सहजे स्थिता:।
मदे शनिस्तमो भाग्ये लाभे ग्लौर्युग्मलग्नत:।।
मदे शनिस्तमो भाग्ये लाभे ग्लौर्युग्मलग्नत:।।
२५
षष्ठी तु राजकुँवरा कूर्मराजस्य कामिनी।
पूर्वनीवृन्नृपालस्य सूरसिंहस्य कन्यका।।
पूर्वनीवृन्नृपालस्य सूरसिंहस्य कन्यका।।
२६
चत्वारो जज्ञिरे यस्यां सुता जयमहीपते:।
तत्र द्वौ बालकावेव कालेन कवलीकृतौ।।
तत्र द्वौ बालकावेव कालेन कवलीकृतौ।।
२७
शेषौ तु द्वौ ययोरासीज्ज्यायान्विजयसिंहक:।
कीर्तिसिंह: कनिष्ठो य: स कामापत्तने स्थित:।।
कीर्तिसिंह: कनिष्ठो य: स कामापत्तने स्थित:।।
२८
राजाऽथ रामसिंहेन विद्यानां पारदृश्वना।
जिष्णुर्यथा जयन्तेन जयं तेन क्व नाप्तवान्।।
जिष्णुर्यथा जयन्तेन जयं तेन क्व नाप्तवान्।।
२९
शनै: शनैर्मृदुकरे जयेन्दावुदिते सति।
मान्द्यं चण्डकरोऽप्यर्कवरो दिल्ल्यां जगाम ह।।
मान्द्यं चण्डकरोऽप्यर्कवरो दिल्ल्यां जगाम ह।।
३०
दारासाहो मुरादाख्यां नवरङ्गश्च सुज्जक:।
चत्वारोऽर्कवरस्यासन्पुत्रा: पूतपराक्रमा:।।
चत्वारोऽर्कवरस्यासन्पुत्रा: पूतपराक्रमा:।।
३१
दारासाहं हरिप्रस्थे प्राच्यां सुज्जं तुरष्कराट्।
नवरङ्गं मुरादं च दक्षिणस्यां न्ययुङ्क्त स:।।
नवरङ्गं मुरादं च दक्षिणस्यां न्ययुङ्क्त स:।।
३२
स्थापयित्वा यथास्थानं सुतानिति स साहिराट्।
क्रमेण लघयामास धुरं दिल्ल्याश्चिरं धृताम्।।
क्रमेण लघयामास धुरं दिल्ल्याश्चिरं धृताम्।।
३३
नवरङ्गस्य निभृतं जयसिंहेन रङ्गिणा।
सख्यमासीदिह प्राय: कारणं रङ्गशीलता।।
सख्यमासीदिह प्राय: कारणं रङ्गशीलता।।
३४
मार्गकृष्णप्रतिपदि वर्षे बाणाद्रिषड्विधौ।
ब्रह्मक्ष वासरे शौरे: कन्यायां वरियानके।।
ब्रह्मक्ष वासरे शौरे: कन्यायां वरियानके।।
३५
रवेरिष्विषुनाडीषु बाणदृष्टिलवेषु च।
अर्कश्रीरर्कवरतो नवरङ्गनृपोऽजनि।।
अर्कश्रीरर्कवरतो नवरङ्गनृपोऽजनि।।
३६
धने ज्ञेनौ भृगुर्याने सुते राहू रिपौ गुरु:।
भाग्येऽब्जार्की शिखी लाभे व्ययेऽङ्गारो जनुर्ग्रहा:।।
भाग्येऽब्जार्की शिखी लाभे व्ययेऽङ्गारो जनुर्ग्रहा:।।
३७
माघे शुक्लेऽनलतिथावब्दे वस्वब्धिषड्विधौ।
बुधे श्रवणनक्षत्रे कन्याङ्गे वज्रयोगके।।
बुधे श्रवणनक्षत्रे कन्याङ्गे वज्रयोगके।।
३८
सप्तत्रिंशद्घटीष्वर्को नोदयात्त्रिषु पलेषु च।
सम्राडर्कवरो जज्ञेऽमुष्य जन्मच्छदो यथा।।
सम्राडर्कवरो जज्ञेऽमुष्य जन्मच्छदो यथा।।
३९
सहजे गीष्पतिर्याने त्वुशना: सह केतुना।
सुतेज्ञेनेन्दवो भौमो मदे राज्ये तम:शनी।।
सुतेज्ञेनेन्दवो भौमो मदे राज्ये तम:शनी।।
४०
युगेन्द्वद्रीन्दुशरदि दारासाहेन लोभत:।
अर्कस्त्वर्कवराबादे कारागारे नियन्त्रित:।।
अर्कस्त्वर्कवराबादे कारागारे नियन्त्रित:।।
४१
भाद्रे साहिजिहाकोऽर्क : खदृगद्रीन्दुवत्सरे।
दीर्घनिद्रातमोग्रस्तो निमिमील विलोचने।।
दीर्घनिद्रातमोग्रस्तो निमिमील विलोचने।।
४२
अर्केऽस्तं याति सहसा नवरङ्गमुरादकौ।
सुज्जश्चेति त्रयो वीरा दिल्लीं जेतुं प्रतस्थिरे।।
सुज्जश्चेति त्रयो वीरा दिल्लीं जेतुं प्रतस्थिरे।।
४३
एवं सति भयाविष्टो ढुण्ढारिमरुपार्थिवौ।
प्रेरयामास दारेन्द्रो रोद्धुं तानभियास्यत:।।
प्रेरयामास दारेन्द्रो रोद्धुं तानभियास्यत:।।
४४
जेतुं तदाज्ञया कूर्म: सुज्जं याति स्म पूर्वत:।
नवरङ्गमुरादौ तु राष्ट्रोढो दक्षिणां प्रति।।
नवरङ्गमुरादौ तु राष्ट्रोढो दक्षिणां प्रति।।
४५
नवरङ्गस्य सङ्कल्पं दारासाहे विदन्नपि।
ययौ सुज्जं जयो जेतुं सहृदर्थं क्षिणोति क:।।
ययौ सुज्जं जयो जेतुं सहृदर्थं क्षिणोति क:।।
४६
जयं तथागतं श्रुत्वा नवरङ्गो मुरादयुक्।
पश्यन् राष्ट्रोढपृष्ठानि दिल्लीगोपुरमाविशत्।।
पश्यन् राष्ट्रोढपृष्ठानि दिल्लीगोपुरमाविशत्।।
४७
स प्रविश्य हरिप्रस्थं दारासाहं निगृह्य च।
मुरादमपि जग्राह सौभ्रात्रं नास्ति लोभिनाम्।।
मुरादमपि जग्राह सौभ्रात्रं नास्ति लोभिनाम्।।
४८
इत्थं निगृह्य बलवान्दारासाहमुरादकौ।
दिल्लीमञ्चं समाक्रम्य नवरङ्गो व्यराजत।।
दिल्लीमञ्चं समाक्रम्य नवरङ्गो व्यराजत।।
४९
एतस्मिन्नन्तरे कूर्मो गयासीम्नि रयाधिक:।
सुज्जं सज्जमपि क्षिप्रं च क्षणेऽधिकरणाङ्गणम्।।
सुज्जं सज्जमपि क्षिप्रं च क्षणेऽधिकरणाङ्गणम्।।
५०
रणनिर्जितसुज्जाय नवरङ्ग: स्वमीयुषे।
जयाय मिरजाराजप्रशस्तिं व्यतरन्मुदा।।
जयाय मिरजाराजप्रशस्तिं व्यतरन्मुदा।।
५१
नवरङ्गाज्ञया रङ्गी युद्धभङ्गीविचक्षण:।
जम्बूजनपदोद्देशान्विजेतुं प्रययौ जय:।।
जम्बूजनपदोद्देशान्विजेतुं प्रययौ जय:।।
५२
स गत्वा तत्र बलवान् दुर्गमानपि पर्वतान्।
निघ्नीचकार तं निघ्नञ्जगतं जगतीपति:।।
निघ्नीचकार तं निघ्नञ्जगतं जगतीपति:।।
५३
इत्थं स जगतं जित्वा स्थित्वाऽहानि कियन्त्यपि।
न्यवर्तत बलै: सार्द्धं नवरङ्गदिदृक्षया।।
न्यवर्तत बलै: सार्द्धं नवरङ्गदिदृक्षया।।
५४
समागत्य हरिप्रस्थं ढुण्ढारिपरमेश्वर:।
मिमेल नवरङ्गेण जातसङ्गेन सम्मदै:।।
मिमेल नवरङ्गेण जातसङ्गेन सम्मदै:।।
५५
आसीदत्र कथासन्धौ दक्षिणस्यां नराधिप:।
घोषलेन्द्रसुत: कोऽपि सेवाशम्भुरिति श्रुत:।।
घोषलेन्द्रसुत: कोऽपि सेवाशम्भुरिति श्रुत:।।
५६
चैत्रे कृष्णे चतुर्थ्यां षड्वसुषट्क्ष्माब्दके कुजे।
करे खाग्निघटीष्वक्षिदृग्लवेषूदयाद्रवे:।।
करे खाग्निघटीष्वक्षिदृग्लवेषूदयाद्रवे:।।
५७
कन्यायां गण्डयोगे यो गेयोदारगुणोऽजनि।
यस्य जन्मदले लग्नो लग्ने ग्लौर्द्रविणे शनि:।।
यस्य जन्मदले लग्नो लग्ने ग्लौर्द्रविणे शनि:।।
५८
सुखे केतुररौ सेज्यो भृगु: किं च मदे बुध:।
आयुषि द्युमणी राज्ये रेजतू राहुमङ्गलौ।।
आयुषि द्युमणी राज्ये रेजतू राहुमङ्गलौ।।
५९
दानवीरो द्विपञ्चाशल्लक्षाणि रजतस्य य:।
कवये भूषणाय द्राग्ददौ स्वं स्तुवते यश:।।
कवये भूषणाय द्राग्ददौ स्वं स्तुवते यश:।।
६०
यं यात्रोन्मुखमाकर्ण्य दरादिल्ली पुन: पुन:।
कपाटमुद्रणव्याजान्मीलिताक्षीव हाऽभवत्।।
कपाटमुद्रणव्याजान्मीलिताक्षीव हाऽभवत्।।
६१
सङ्ख्येष्वसङ्ख्यरङ्गेण येन दोर्दण्डशालिना।
प्रसह्य नवरङ्गेन्द्रे रङ्गोऽप्येको न शेषित:।।
प्रसह्य नवरङ्गेन्द्रे रङ्गोऽप्येको न शेषित:।।
६२
त्विङ्गत्तुङ्गतुरङ्गालीटापव्याधूतधूलिभि:।
असकृद्येन संरुद्धा: सन्दिग्धार्कदशा दिश:।।
असकृद्येन संरुद्धा: सन्दिग्धार्कदशा दिश:।।
६३
यं यान्तमनुयान्ति स्म कोटिशो हयसादिन:।
येन दिग्दक्षिणाऽप्यासीदुत्तरा दिक्षु वैभवै:।।
येन दिग्दक्षिणाऽप्यासीदुत्तरा दिक्षु वैभवै:।।
६४
कदाचिन्नवरङ्गोऽथ सेवाशम्भुकदर्थित:।
उवाच जयवर्माणं धृतवर्माणमुच्चकै:।।
उवाच जयवर्माणं धृतवर्माणमुच्चकै:।।
६५
उच्छृङ्खलं महाराज सेवाशम्भुर्विचेष्टते।
सम्म्राजमपि मां दर्पात्तृणवन्मनुते बली।।
सम्म्राजमपि मां दर्पात्तृणवन्मनुते बली।।
६६
तदद्य याहि सन्नद्धो बद्ध्वा द्राक् तमिहानय।
किं बहूक्त्या महाबाहो मदीयं शल्यमुद्धर।।
किं बहूक्त्या महाबाहो मदीयं शल्यमुद्धर।।
६७
दिल्लीश्वरस्य विज्ञप्तिं श्रुत्वा सोऽम्बावतीश्वर:।
न भेतव्यमहं यामीत्युक्त्वा सद्म स्वमासदत्।।
न भेतव्यमहं यामीत्युक्त्वा सद्म स्वमासदत्।।
६८
जैत्रयात्रार्थमादिश्य सामन्तान्स समन्तत:।
इति कर्तव्यतां चिन्वञ्जजागार नृपो निशि।।
इति कर्तव्यतां चिन्वञ्जजागार नृपो निशि।।
६९
उत्तस्थौ सूर्यमल्लाह्वो भौम्य: कोऽपि नृपाग्रत:।
द्यौसायां विद्यते यस्य मठच्चित्रोज्ज्वलच्छट:।।
द्यौसायां विद्यते यस्य मठच्चित्रोज्ज्वलच्छट:।।
७०
तालोत्सेधो महाबाहु: श्मश्रुलो लोहितेक्षण:।
दन्दशूकं दधत्कण्ठे भूम्योऽदृश्यत भल्लभृत्।।
दन्दशूकं दधत्कण्ठे भूम्योऽदृश्यत भल्लभृत्।।
७१
राजाऽपि पूर्वकायेन त्यक्तपल्यङ्कमण्डल:।
खड्गमालम्ब्य पप्रच्छ दूरात्कस्त्वमसीति तम्।।
खड्गमालम्ब्य पप्रच्छ दूरात्कस्त्वमसीति तम्।।
७२
भृशं भीमाकृतिर्भूम्य: पुरस्तादुपसृत्य स:।
जयसिंहाय किमपि विज्ञप्तुमुपचक्रमे।।
जयसिंहाय किमपि विज्ञप्तुमुपचक्रमे।।
७३
द्यौसाया विद्धि मां भूम्यं सूर्यमल्लाभिधं प्रभो।
प्रागिवाद्य तवामात्यैर्न दीपो मे प्रवर्त्त्यते।।
प्रागिवाद्य तवामात्यैर्न दीपो मे प्रवर्त्त्यते।।
७४
एतदेवाऽत्र कूर्मेन्द्र मदागमनकारणम्।
गतिर्मे देवयोनित्वान्न क्वापि प्रतिहन्यते।।
गतिर्मे देवयोनित्वान्न क्वापि प्रतिहन्यते।।
७५
विज्ञप्तिं सूर्यमल्लस्य कूर्ममल्लो निशम्य स:।
उवाच वचनं वाग्मी स्मितजयोत्स्नोज्ज्वलाधर:।।
उवाच वचनं वाग्मी स्मितजयोत्स्नोज्ज्वलाधर:।।
७६
भवतो दीपकज्योतिरखण्डं ज्वालयिष्यते।
किन्तु मामनुवर्तस्व सज्ज: सन्सङ्कटे स्मृत:।।
किन्तु मामनुवर्तस्व सज्ज: सन्सङ्कटे स्मृत:।।
७७
तथेति स परिज्ञाय भूम्य: सद्यस्तिरोदधे।
राजाऽप्युदञ्चिताश्चर्य: कथमप्यथ सोऽस्वपत्।।
राजाऽप्युदञ्चिताश्चर्य: कथमप्यथ सोऽस्वपत्।।
७८
उत्थायोषसि निर्वर्त्त्य सूर्यमल्लस्य शासनम्।
प्रतस्थे सेनया कूर्मोऽगस्त्यपस्त्यायितां दिशम्।।
प्रतस्थे सेनया कूर्मोऽगस्त्यपस्त्यायितां दिशम्।।
७९
उल्लङ्घ्य दूरमध्वानं ध्वनद्दुन्दुभिरग्रत:।
बीजापुरं महीजानिर्जयति स्म जयी जय:।।
बीजापुरं महीजानिर्जयति स्म जयी जय:।।
८०
जन्ये निर्जित्य सर्ज्जेखाँह्वयं यवनपुङ्गवम्।
प्राप पृथ्वीप्रभु: सेवाशम्भुं शम्भुनिभप्रभ:।।
प्राप पृथ्वीप्रभु: सेवाशम्भुं शम्भुनिभप्रभ:।।
८१
तत्र शोभाविनि मृधे सेवाशम्भुजिगीषया।
सस्मार नृपतिर्नक्तं भूम्यं तं सूर्यमल्लकम्।।
सस्मार नृपतिर्नक्तं भूम्यं तं सूर्यमल्लकम्।।
८२
चिन्तितोपस्थितो भूम्यो महाबलपराक्रम:।
उवाच वाचमेषोऽहं किङ्कर: किं करोमि ते।।
उवाच वाचमेषोऽहं किङ्कर: किं करोमि ते।।
८३
राजाऽपि जातविश्वास: स्तुत्वा तं भूम्यतल्लजम्।
अलिखल्लेखविल्लेखं सेवाशम्भुं प्रति स्वयम्।।
अलिखल्लेखविल्लेखं सेवाशम्भुं प्रति स्वयम्।।
८४
शम्भो मे दीयतां दण्ड: प्रणतेन पदोस्त्वया।
अन्यथोष्णीषमिव ते हरिष्यामि शिरोऽचिरम्।।
अन्यथोष्णीषमिव ते हरिष्यामि शिरोऽचिरम्।।
८५
इति लेखं पत्रमध्ये लिखित्वादित तस्य स:।
शिरोवेष्टनमादाय पत्रं संस्थाप्य याहि माम्।।
शिरोवेष्टनमादाय पत्रं संस्थाप्य याहि माम्।।
८६
इति राज्ञो वचं श्रुत्वा तथैव विदधे च स:।
पुनर्भूपतिमायातस्तमापृच्छ्य गत: पदम्।।
पुनर्भूपतिमायातस्तमापृच्छ्य गत: पदम्।।
८७
प्रबुद्ध्योषसि विस्मेर: शिरोऽनुष्णीषमात्मन:।
पश्यन्पत्रं ततो लब्धं वाचयित्वाऽन्वशङ्कत।।
पश्यन्पत्रं ततो लब्धं वाचयित्वाऽन्वशङ्कत।।
८८
अथो गलदहङ्कारो न्यस्तशस्त्रोऽतिसम्भ्रम:।
उपेत्य तं नरपतिं पादयो: प्रणनाम स:।।
उपेत्य तं नरपतिं पादयो: प्रणनाम स:।।
८९
प्रणिपातपरं तस्मिन्कृत्वाऽनुग्रहमुच्चकै:।
निजगाद नृपो वाचा मेघनादगभीरया।।
निजगाद नृपो वाचा मेघनादगभीरया।।
९०
सेवाशम्भो त्वयाऽवश्यं वश्येन द्विषां सता।
एकवारं मदादेशाद् दिल्ली सपदि दृश्यताम्।।
एकवारं मदादेशाद् दिल्ली सपदि दृश्यताम्।।
९१
तत्र गत्वा विनीत: सन्नवरङ्गेण सन्मिल:।
न भेतव्यं यतस्तत्र रामसिंहोऽस्ति मे सुत:।।
न भेतव्यं यतस्तत्र रामसिंहोऽस्ति मे सुत:।।
९२
स हि वर्मभृतामग्र्य: सत्यसन्धो महामति:।
सम्म्राजे दर्शयित्वा त्वामिह द्राक् प्रापयिष्यति।।
सम्म्राजे दर्शयित्वा त्वामिह द्राक् प्रापयिष्यति।।
९३
तद्गच्छ किं विलम्बेन चिन्तामुन्मुच्य मानसीम्।
न त्वां हन्तुं क्षम: कश्चिद्रामसिंहे हि तिष्ठति।।
न त्वां हन्तुं क्षम: कश्चिद्रामसिंहे हि तिष्ठति।।
९४
नृपेणेति समादिष्ट: शम्भु: शं भुवि वर्तयन्।
दिल्लीं वीरमतल्ली द्रागाऽऽप टापवताऽर्वता।।
दिल्लीं वीरमतल्ली द्रागाऽऽप टापवताऽर्वता।।
९५
सोऽकस्मादेत्य हरिणा हरिप्रस्थं हरिद्युति:।
रामसिंहेन निभृतं मिमेल मिलदञ्जलि:।।
रामसिंहेन निभृतं मिमेल मिलदञ्जलि:।।
९६
रामसिंहोऽपि वीरस्तं दिल्लीन्द्राय निवेदयन्।
व्याजहारस्मितव्याजज्योत्स्नाविक्षुरितानन:।।
व्याजहारस्मितव्याजज्योत्स्नाविक्षुरितानन:।।
९७
असकृद्येन साहीन्द्रसैन्यानि क्षपितानि ते।
सोऽयं दक्षिणदिग्देव: सेवाशम्भुर्निरीक्ष्यताम्।।
सोऽयं दक्षिणदिग्देव: सेवाशम्भुर्निरीक्ष्यताम्।।
९८
किमत्र मनुषे स्वामिन्समाज्ञापय मा चिरम्।
महाराजास्तु तत्रैव सन्ति दन्तिक्रयोन्मुखा:।।
महाराजास्तु तत्रैव सन्ति दन्तिक्रयोन्मुखा:।।
९९
इति विज्ञप्तिमाकर्ण्य रामसिंहस्य साहिराट्।
उच्चैर्विचिन्तयामास सेवाशम्भुं निभालयन्।।
उच्चैर्विचिन्तयामास सेवाशम्भुं निभालयन्।।
१००
अहो सत्त्वमहो धैर्यमहो अस्याकृतिच्छटा।
इति चिन्तां चिरं कृत्वा रामसिंहं समादिशत्।।
इति चिन्तां चिरं कृत्वा रामसिंहं समादिशत्।।
१०१
न्यासोऽयं रक्ष्यतां राम त्वयि न्यस्तो मयाऽधुना।
इत्यादिश्य च्छलं चिन्वन्नुभौ बिभ्यन्व्यसर्जयत्।।
इत्यादिश्य च्छलं चिन्वन्नुभौ बिभ्यन्व्यसर्जयत्।।
१०२
तत: साहितुरासाहा सेवाशम्भुं जिघृक्षता।
अभितो रामशिविरं न्यधायिषत यामिका:।।
अभितो रामशिविरं न्यधायिषत यामिका:।।
१०३
रामसिंहो महाबुद्धिर्ज्ञातसाहीन्द्रविक्रिय:।
पिधाय वीवधपुटे शम्भुं द्राङ् निरकासयत्।।
पिधाय वीवधपुटे शम्भुं द्राङ् निरकासयत्।।
१०४
स दु्रतस्तूर्णमश्वेन शम्भुर्मारुतरंहसा।
प्राप्य राज्यं निजं तत्र तत्रास जयसिंहत:।।
प्राप्य राज्यं निजं तत्र तत्रास जयसिंहत:।।
१०५
जयोऽपि शम्भुमाश्वास्य शरणागतवत्सल:।
न्यवर्तत स्फुरत्कीर्ति: कृतदक्षिणदिग्जय:।।
न्यवर्तत स्फुरत्कीर्ति: कृतदक्षिणदिग्जय:।।
१०६
इत: पुनस्तुरष्केन्द्र: श्रुतशम्भुपलायन:।
राममाहूय मे न्यासो दीयतामित्ययाचत।।
राममाहूय मे न्यासो दीयतामित्ययाचत।।
१०७
वाचमाचम्य सम्म्राज: कर्णाभ्यां कूर्मनन्दन:।
उज्जगार गिरं गुर्वीं धैर्यखर्वीकृतार्णव:।।
उज्जगार गिरं गुर्वीं धैर्यखर्वीकृतार्णव:।।
१०८
यस्त्वया भूभुजां स्वामिन्नासीन्न्यासीकृतो मयि।
सेवाशम्भु: स शम्भुश्रीर्जठरे मेऽद्य वर्तते।।
सेवाशम्भु: स शम्भुश्रीर्जठरे मेऽद्य वर्तते।।
१०९
निशम्य रामसिंहस्य वाचं सिंहास्पदस्य स:।
जज्वाल कल्पमार्तण्डकल्प: सङ्कल्पमुद्रणात्।।
बद्धभ्रुकुटिदुर्दर्शोदशनैरधरं दशन्।
रामसिंहं समुद्दिश्य सम्राडुदचरद्वच:।।
जज्वाल कल्पमार्तण्डकल्प: सङ्कल्पमुद्रणात्।।
बद्धभ्रुकुटिदुर्दर्शोदशनैरधरं दशन्।
रामसिंहं समुद्दिश्य सम्राडुदचरद्वच:।।
११०
तं प्रसूष्व सुखं राम नवमासा: कृतोऽवधि:।
व्यतीते चावधौ किञ्चिच्चिन्तयिष्ये चिकित्सितम्।।
व्यतीते चावधौ किञ्चिच्चिन्तयिष्ये चिकित्सितम्।।
१११
श्रुत्वा प्रभोर्गिरं राम: संस्तभ्यात्मानमात्मना।
नोवाच धृतिमान्किञ्चित्किन्त्वगात्सद्म निर्भय:।।
नोवाच धृतिमान्किञ्चित्किन्त्वगात्सद्म निर्भय:।।
११२
दिवसेषु व्यतीतेषु दिल्लीन्द्रो गूढविक्रिय:।
प्रससाद बहिर्यद्वदन्तर्लीनग्रहो हृद:।।
प्रससाद बहिर्यद्वदन्तर्लीनग्रहो हृद:।।
११३
एवं सत्येकदा दिल्लीपतिर्भल्लिभिरन्वित:।
जगाम मृगयाहेतोर्वनं रामोऽपि तद्गिरा।।
जगाम मृगयाहेतोर्वनं रामोऽपि तद्गिरा।।
११४
सिंहेन रामसिंहस्य चिकीर्षुर्वधमञ्जसा।
वनं जगाहे दिल्लीन्द्रो मुदा भिल्लिभिरीक्षित:।।
वनं जगाहे दिल्लीन्द्रो मुदा भिल्लिभिरीक्षित:।।
११५
अथ प्रदर्श्य वप्रान्तर्दूरात्क्रूराशयो हरिम्।
रामसिंहं महासिंहं वाचमित्थमुवाच स:।।
रामसिंहं महासिंहं वाचमित्थमुवाच स:।।
११६
रामसिंहोऽसि लोके त्वं किञ्चाऽयमपि सिंहराट्।
योद्धुमर्हस्यतोऽनेन समयो: शोभते रण:।।
योद्धुमर्हस्यतोऽनेन समयो: शोभते रण:।।
११७
इत्थमाज्ञापितो भर्त्रा बद्ध्वा परिकरं परम्।
रामसिंहो महासिंहो धृत्वा द्राक् समसज्जत।।
रामसिंहो महासिंहो धृत्वा द्राक् समसज्जत।।
११८
सिंहमुद्दिश्य चलति रामसिंहे दधत्यसिम्।
पुन: पापमतिर्दिल्लीपतिरुच्चैरभाषत।।
पुन: पापमतिर्दिल्लीपतिरुच्चैरभाषत।।
११९
पश्य भो रामसिंहाऽयं सिंह: स्फूर्जत्यनायुध:।
त्वं पुन: सायुधोऽसीति वैषम्यं न धिनोति माम्।।
त्वं पुन: सायुधोऽसीति वैषम्यं न धिनोति माम्।।
१२०
तद्याहि खड्गमुत्सृज्य केसरीन्द्रं नृकेसरिन्।
द्रक्ष्यामि युवयोर्युद्धं परं कौतूहलं हि मे।।
द्रक्ष्यामि युवयोर्युद्धं परं कौतूहलं हि मे।।
१२१
इत्थं प्रभो निर्दिशति खड्गमुत्सृज्य साहसी।
बद्धवर्मा महाकर्मा जगर्जाभिमुखं हरे:।।
बद्धवर्मा महाकर्मा जगर्जाभिमुखं हरे:।।
१२२
श्रुत्वा तद्गर्जितान्युच्चैर्विनद्य च मुहुर्मुहु:।
अभ्युत्पपात पञ्चास्य: पुच्छमुच्छालयन् रुषा।।
अभ्युत्पपात पञ्चास्य: पुच्छमुच्छालयन् रुषा।।
१२३
तत्क्षणं रामसिंहोऽपि हस्तं संवेष्ट्य कर्पटै:।
प्रवेशयामास हरेरुच्चैर्विस्फारिते मुखे।।
प्रवेशयामास हरेरुच्चैर्विस्फारिते मुखे।।
१२४
पूरयित्वा करेणास्यं मृगेन्द्रस्य विवल्गत:।
तलातलि चिरं वीरो युयुधे महदद्भुतम्।।
तलातलि चिरं वीरो युयुधे महदद्भुतम्।।
१२५
निपात्य सिंहमुत्तानं वक्षस्यारुह्य मुष्टिभि:।
निर्दयं ताडयामास मर्मस्थानेषु मर्मवित्।।
निर्दयं ताडयामास मर्मस्थानेषु मर्मवित्।।
१२६
बहुशस्ताड्यमानस्य रक्तमुद्गिरतो भृशम्।
क्रन्दितं केसरीन्द्रस्य व्यानशे विपिनोदरम्।।
क्रन्दितं केसरीन्द्रस्य व्यानशे विपिनोदरम्।।
१२७
हतप्रायमिव ज्ञात्वा सिंहं श्रीजयसिंहज:।
पश्यतो नवरङ्गस्य पशुमारममारयत्।।
पश्यतो नवरङ्गस्य पशुमारममारयत्।।
१२८
गृहीत्वा पादयो: पश्चाद् भ्रामयित्वा समन्तत:।
शिलायां पोथयामास शीर्णसर्वाङ्गयोजनम्।।
शिलायां पोथयामास शीर्णसर्वाङ्गयोजनम्।।
१२९
इत्थं विपोथ्य सिंहं स रक्तबिन्दुभिरुक्षित:।
ननाम नवरङ्गेन्द्रं दंष्ट्राविद्धेन पाणिना।।
ननाम नवरङ्गेन्द्रं दंष्ट्राविद्धेन पाणिना।।
१३०
दुष्करं वीक्ष्य तत्कर्म दिल्लीन्द्र: स दरादर:।
स्तुवन्मुहुरगाद्दिल्लीं दूयमानेन चेतसा।।
स्तुवन्मुहुरगाद्दिल्लीं दूयमानेन चेतसा।।
१३१
दले तत्सर्वमालिख्य वृत्तान्तं वार्त्तापूर्वकम्।
वृत्तान्तहारिणा राम: प्रापयामास भूभुजे।।
वृत्तान्तहारिणा राम: प्रापयामास भूभुजे।।
१३२
अथ विज्ञानवृत्तान्तो राजा कमठगोत्रज:।
दलं विलिख्य सम्म्राजे प्रेषयामास तद्यथा।।
दलं विलिख्य सम्म्राजे प्रेषयामास तद्यथा।।
१३३
स्वस्ति श्रीसाहिराजेषु जयस्य नतिरेधताम्।
आस्ते शमत्र तत्रास्तु वित्त मां शीघ्रमागतम्।।
आस्ते शमत्र तत्रास्तु वित्त मां शीघ्रमागतम्।।
१३४
किञ्च श्रुतं मया यूयं रामसिंहेऽन्यथादृश:।
तत्किं साम्राज्यसम्पत्तिर्भवद्भ्यो नाद्य रोचते।।
तत्किं साम्राज्यसम्पत्तिर्भवद्भ्यो नाद्य रोचते।।
१३५
सुज्ज: स यस्य धारायां ममज्ज सह सेनया।
संहत्र्ता विद्विषामुच्चैर्मदसिर्विस्मृत: कथम्।।
संहत्र्ता विद्विषामुच्चैर्मदसिर्विस्मृत: कथम्।।
१३६
प्रेष्य प्रेष्येण पत्रं स जेष्यन् दिल्लीपतिं रुषा।
प्रतस्थेऽपां पतिद्वेष्यमहर्षे: ककुभो जय:।।
प्रतस्थेऽपां पतिद्वेष्यमहर्षे: ककुभो जय:।।
१३७
दिल्लीवृद्धश्रवा: श्रुत्वा पत्रोदन्तमशेषत:।
उवाहान्तर्भृशं चिन्तामब्धिरौर्वशिखामिव।।
उवाहान्तर्भृशं चिन्तामब्धिरौर्वशिखामिव।।
१३८
साद: पापमतिर्घातं कलयामास भूभुजि।
उपकार: कृतोऽसत्सु ह्यपकाराय कल्पते।।
उपकार: कृतोऽसत्सु ह्यपकाराय कल्पते।।
१३९
जानन्बलं जयस्याऽसौ निगृहीतुमनीश्वर:।
निश्चिकाय विषं दातुमुपायमनपायिनम्।।
निश्चिकाय विषं दातुमुपायमनपायिनम्।।
१४०
भरोनपत्तनप्रान्तेऽध्युषिताय नृपाय स:।
भृत्येन विषमुत्कोचप्रीतेन समदापयत्।।
भृत्येन विषमुत्कोचप्रीतेन समदापयत्।।
१४१
अन्नपानेषु भृत्येन गुप्तरीत्यावचारितम्।
शिश्ये विश्वासमापन्नो विषं भुक्त्वा विशां पति:।।
शिश्ये विश्वासमापन्नो विषं भुक्त्वा विशां पति:।।
१४२
अथ तद्वेगविध्वस्तमर्मनिर्माणविह्वल:।
महात्मा जयसिंहेन्द्रो जहौ हा हन्त जीवितम्।।
महात्मा जयसिंहेन्द्रो जहौ हा हन्त जीवितम्।।
१४३
पौरुषं नवरङ्गस्य कीर्त्तये किमत: परम्।
शतमल्लाधिको राजा शतमल्लेन घातित:।।
शतमल्लाधिको राजा शतमल्लेन घातित:।।
१४४
आश्वयुक्कृष्णपञ्चम्यामब्धिदृक्क्रुध्रकौ नृप:।
वत्सरे वत्स रे क्वाऽहं जल्पन्निति तनुं जहौ।।
वत्सरे वत्स रे क्वाऽहं जल्पन्निति तनुं जहौ।।
१४५
एवं सति सतीगण्या मण्याऽभरणभूषिता।
तत्र बीकावती देवी देवं तमनुगाऽभवत्।।
तत्र बीकावती देवी देवं तमनुगाऽभवत्।।
१४६
तातं तथा मृतं श्रुत्वा रामसिंहोऽश्रुलोचन:।
क्रिया निर्वत्र्य सकला द्रागासीद्राजशब्दभाक्।।
क्रिया निर्वत्र्य सकला द्रागासीद्राजशब्दभाक्।।
१४७
दिल्लीन्द्रोऽपि विशल्य: सन्कमठेन्द्रनिमीलनात्।
स्वायत्तीकृत्य मुमुदे पुरीमम्बावतीं खल:।।
स्वायत्तीकृत्य मुमुदे पुरीमम्बावतीं खल:।।
१४८
रञ्जयन्नवरङ्गेन्द्रं रामसिंहोऽपि धीरधी:।
तूष्णीमेवास समयमीक्षमाणो विचक्षण:।।
तूष्णीमेवास समयमीक्षमाणो विचक्षण:।।
१४९
स्त्रियोऽस्य पञ्च तत्राद्या हड्डगोत्रा मुकुन्दजा।
हित्वाऽष्टदिनदेशीयं कृष्णसिंहं ममार या।।
हित्वाऽष्टदिनदेशीयं कृष्णसिंहं ममार या।।
१५०
भाद्रे कृष्णदशम्यां यो मन्देऽब्दे क्ष्मेन्दुशैलकौ।
आसीदैशे तुलालग्रे नाडीषु नवसूदयात्।।
आसीदैशे तुलालग्रे नाडीषु नवसूदयात्।।
१५१
राष्ट्रोढान्वयजालोरराजकेसरिसिंहजा।
द्वितीया रामराजस्य स्त्री रामकुँवरा वरा।।
द्वितीया रामराजस्य स्त्री रामकुँवरा वरा।।
१५२
राज्ञो भगेली महिषी बभूवानूपसिंहजा।
यां विदु: साहिकुँवरां नामधेयेन तद्विद:।।
यां विदु: साहिकुँवरां नामधेयेन तद्विद:।।
१५३
समये समयोल्लासा ययेन्द्रकुँवरा सुता।
प्रसूयते स्म नीत्येव सम्पत्ति: सुप्रयुक्तया।।
प्रसूयते स्म नीत्येव सम्पत्ति: सुप्रयुक्तया।।
१५४
गोडेन्द्रानर्दसिंहस्य पुत्री सिंहकृशोदरी।
रामा रामस्य शुशुभे शुभलक्षणलक्षिता।।
रामा रामस्य शुशुभे शुभलक्षणलक्षिता।।
१५५
चाहमानचणस्यामसिंहजा काऽप्यभूत्परा।
यस्यामनूपकुँवरा नृपतेरास कन्यका।।
यस्यामनूपकुँवरा नृपतेरास कन्यका।।
१५६
तनौ शनि: सुते राहुद्र्विषीज्यो ग्लौस्तु धर्मणि।
भृगु: खे लाभगा भौमशिखीना व्ययगो बुध:।।
भृगु: खे लाभगा भौमशिखीना व्ययगो बुध:।।
१५७
किं चैका श्रेष्ठिकवधूश्चम्पा शम्पासमच्छवि:।
उत्तार्य सौधतो राज्ञा नीता नीति: क्व कामिनाम्।।
उत्तार्य सौधतो राज्ञा नीता नीति: क्व कामिनाम्।।
१५८
क्रोशतोऽभिसमं तस्या बन्धूनाश्वास्य युक्तिभि:।
अशक्त: शासितुं रामं रुरोदान्तस्तुरष्कप:।।
अशक्त: शासितुं रामं रुरोदान्तस्तुरष्कप:।।
१५९
यस्यामास सुतो राज्ञ: किशोरो दासपूर्वक:।
किशोरदासतो जज्ञे चूडसी तनयो बली।।
किशोरदासतो जज्ञे चूडसी तनयो बली।।
१६०
रामसिंह: कृष्णसिंहं सप्तसप्ताश्वतेजसम्।
राजकन्यागुणैर्धन्या युवानमुदवाहयत्।।
राजकन्यागुणैर्धन्या युवानमुदवाहयत्।।
१६१
रामसिंहात्मज: श्रीमांस्ताभिरद्भुतकान्तिभि:।
विजहार गवाक्षेषु पुष्पतल्पसुगन्धिषु।।
विजहार गवाक्षेषु पुष्पतल्पसुगन्धिषु।।
१६२
तासु काचित्तत: पुत्रमजनिष्ट महौजसम्।
ज्येष्ठकृष्णत्रयोदश्यामब्देऽष्टाक्ष्यद्रिकौ भृगौ।।
ज्येष्ठकृष्णत्रयोदश्यामब्देऽष्टाक्ष्यद्रिकौ भृगौ।।
१६३
कृत्तिकासूदयाद्भानोश्चमूनाडीष्वितासु च।
वृषलग्न सुवेलायां कृष्णसिंहात्मजोऽजनि।।
वृषलग्न सुवेलायां कृष्णसिंहात्मजोऽजनि।।
१६४
लग्नऽब्जे नौ धने भौमभृगुज्ञा: सहजे गुरु:।
तनुजे केतुरायस्थ: सैंहिकेय: सहाऽर्किणा।।
तनुजे केतुरायस्थ: सैंहिकेय: सहाऽर्किणा।।
१६५
राजाऽथ वितरन्वित्तं पौत्रजन्मप्रहर्षित:।
ययावन्त:पुरे विज्ञो लक्षणान्यस्य लक्षितुम्।।
ययावन्त:पुरे विज्ञो लक्षणान्यस्य लक्षितुम्।।
१६६
अरिष्टात्स्त्रीभिरानीतं वीक्ष्य तं विष्णुविक्रमम्।
निधिं धाम्नामसौ नाम्रा विष्णुसिंहमिति व्यधात्।।
निधिं धाम्नामसौ नाम्रा विष्णुसिंहमिति व्यधात्।।
१६७
विष्णुसिंह: कुमारोऽसौ सुकुमारतरोऽपि सन्।
अनेहसाऽथ कियता जन्येष्वजनि कर्कश:।।
अनेहसाऽथ कियता जन्येष्वजनि कर्कश:।।
१६८
शङ्खचक्रगदापद्मस्फुरत्पाणिर्वलद्बल:।
न कं सहर्षमकृत विष्णुरक्रूरसत्कृत:।।
न कं सहर्षमकृत विष्णुरक्रूरसत्कृत:।।
१६९
दारक्रियोचितावस्थं वीक्ष्य विष्णुं विशाम्पति:।
राज्ञां विवाहयामास कन्या: पञ्च यथाक्रमम्।।
राज्ञां विवाहयामास कन्या: पञ्च यथाक्रमम्।।
१७०
तत्राद्या त्विन्द्रकुँवरा राष्ट्रोढकुलकन्यका।
हंवीरचाहमानोत्था फुल्लादिकुँवरा परा।।
हंवीरचाहमानोत्था फुल्लादिकुँवरा परा।।
१७१
हड्डजाऽच्छकुँवरा भावभूपसमुद्भवा।
वटगुर्जररावेन्द्रदुहिता महिताऽभवत्।।
वटगुर्जररावेन्द्रदुहिता महिताऽभवत्।।
१७२
पञ्चमीं विष्णुसिंहस्य रामामोकमसिंहजा।
चाहमानभवां प्राहुर्यां प्राञ्चो बहुरङ्गदाम्।।
चाहमानभवां प्राहुर्यां प्राञ्चो बहुरङ्गदाम्।।
१७३
स कृष्णविष्णुसिंहाभ्यां समनुष्ठितशासन:।
शशास रामसिंहेन्द्रो ढुण्ढारिविषयं वशी।।
शशास रामसिंहेन्द्रो ढुण्ढारिविषयं वशी।।
१७४
श्रीलालमिश्रतनुजो मिश्र: स हरिजीवन:।
रामाज्ञया प्रहसनं चक्रेऽद्भुततरङ्गकम्।।
रामाज्ञया प्रहसनं चक्रेऽद्भुततरङ्गकम्।।
१७५
अनन्तवैद्यजनुषा वैद्यशङ्करशर्मणा।
ग्रन्थो वैद्यविनोदाख्य: प्रणोदाय कृतो रुजाम्।।
ग्रन्थो वैद्यविनोदाख्य: प्रणोदाय कृतो रुजाम्।।
१७६
कृष्णसिंहस्तु संम्राजा प्रेषित: कृष्णविक्रम:।
दक्षिणां दिशमासाद्य युयुधे युद्धलालस:।।
दक्षिणां दिशमासाद्य युयुधे युद्धलालस:।।
१७७
तत्र स्वकीयवीरेषु मूर्च्छितेष्वनिवर्त्तन:।
पर: शतान्परान्हत्वा शङ्खं दध्मौ क्षतोऽप्यलम्।।
पर: शतान्परान्हत्वा शङ्खं दध्मौ क्षतोऽप्यलम्।।
१७८
जित्वेति कृष्णवर्माऽजौ बीतवर्मा प्रहारत:।
वैद्यै: परावरादुर्गे रक्षितोऽप्यजहादसून्।।
वैद्यै: परावरादुर्गे रक्षितोऽप्यजहादसून्।।
१७९
फाल्गुने मासि धवलद्वितीयायां क्षतातुर:।
नन्दाद्रिसप्तकावब्दे कृष्णसिंहो व्यपद्यत।।
नन्दाद्रिसप्तकावब्दे कृष्णसिंहो व्यपद्यत।।
१८०
सप्तसु द्वे स्त्रियौ तस्य वियोगं सोढुमक्षमे।
तमन्वम्बावतीसीम्नि चितामारुह्य जग्मतु:।।
तमन्वम्बावतीसीम्नि चितामारुह्य जग्मतु:।।
१८१
शुशोच नाधिकं राजा जयिनं व्यसुमात्मजम्।
क्षतारि: क्षत्रिय: शस्त्रक्षुण्णाऽसुर्न हि शोच्यते।।
क्षतारि: क्षत्रिय: शस्त्रक्षुण्णाऽसुर्न हि शोच्यते।।
१८२
दाक्षिणात्या जगू रामो विजेतुं दक्षिणां दिशम्।
प्रतस्थे कृष्णसिंहेन युद्धहेवाकिना सह।।
प्रतस्थे कृष्णसिंहेन युद्धहेवाकिना सह।।
१८३
अथ दक्षिणराजेन कूर्मराजस्य दृप्यता।
ववृधे दशवक्त्रेण राघवस्येव सङ्गर:।।
ववृधे दशवक्त्रेण राघवस्येव सङ्गर:।।
१८४
परिघेण रिपोस्तत्र क्षतवक्षा विशाम्पति:।
मुमूर्छ रथमालम्ब्य मुष्टिश्लथशरासन:।।
मुमूर्छ रथमालम्ब्य मुष्टिश्लथशरासन:।।
१८५
मूर्च्छिते नृपतावुच्चैर्मूर्च्छितान्तरमुद्यरौ।
युयुधे रोषरक्ताक्षो रामसिंहसुतो बली।।
युयुधे रोषरक्ताक्षो रामसिंहसुतो बली।।
१८६
निचखान रिपोर्वीरो हृदये द्वारपञ्चकम्।
गामगात्तद्विधायेव प्राणानां द्वारपञ्चकम्।।
गामगात्तद्विधायेव प्राणानां द्वारपञ्चकम्।।
१८७
क्षुरप्रै:क्षतहृच्छत्रु: क्षतजच्छुरितच्छवि:।
उत्पपात रथात् कु्रद्धो धृतासि: श्येनलाघव:।।
उत्पपात रथात् कु्रद्धो धृतासि: श्येनलाघव:।।
१८८
परेणागत्य समरतत्परेण निजासिना।
चिच्छिदे कृष्णसिंहस्य मस्तकं मुकुटोज्ज्वलम्।।
चिच्छिदे कृष्णसिंहस्य मस्तकं मुकुटोज्ज्वलम्।।
१८९
स कृत्तमस्तकत्वेन कबन्धो भीमदर्शन:।
बलगतो वैरिण: कण्ठमवगृह्य ममर्द ह।।
बलगतो वैरिण: कण्ठमवगृह्य ममर्द ह।।
१९०
सङ्ख्ये संस्थामिति प्राप्य विमाने संस्थितावुभौ।
वीरौ वीरेषु पश्यत्सु स्वर्गतौ महदद्भुतम्।।
वीरौ वीरेषु पश्यत्सु स्वर्गतौ महदद्भुतम्।।
१९१
नृपो बुद्ध्वाऽथ पुत्रस्य श्रुत्वाऽजौ विक्रमं मृतिम्।
वीरभावं स्तुवन्साश्रु जहर्ष च शुशोच च।।
वीरभावं स्तुवन्साश्रु जहर्ष च शुशोच च।।
१९२
दक्षिणस्यां दिशि स्वीयमङ्घ्निमित्थं निधाय स:।
अम्बावतीं निववृते विष्णुसिंहेन पालिताम्।।
अम्बावतीं निववृते विष्णुसिंहेन पालिताम्।।
१९३
अम्बापुरीं प्रविश्याऽसौ कृष्णसिंहं विनोन्मना:।
विष्णुसिंहे धृताशंसो राजा राज्यं दधाविति।।
विष्णुसिंहे धृताशंसो राजा राज्यं दधाविति।।
१९४
इत्येष रामसिंहस्य परिवार: प्रपञ्चित:।
पराक्रमविचित्राणि चरित्राण्यथ कीर्तये।।
पराक्रमविचित्राणि चरित्राण्यथ कीर्तये।।
१९५
जये दिवं गते राज्ञि रामे च शिथिलोद्यमे।
आसामकाबिलादीनि स्थलानि स्थितिमत्यजन्।।
आसामकाबिलादीनि स्थलानि स्थितिमत्यजन्।।
१९६
अथाऽनन्यगति: संम्राड्देशोपप्लवशान्तये।
विनिश्चिकाय मनसा राममेव धुरन्धरम्।।
विनिश्चिकाय मनसा राममेव धुरन्धरम्।।
१९७
गच्छत्स्वह:सु निर्वर्त्य मृत्युप्रश्रादिसत्कृतिम्।
साहीन्द्रो रामसिंहाय ददावम्बावतीं पुरीम्।।
साहीन्द्रो रामसिंहाय ददावम्बावतीं पुरीम्।।
१९८
प्राप्तामपि गुरो: पश्चात्पुरीमम्बावतीमसौ।
दिल्लीश्वराज्ञया भूय: प्राप्यासीद्राजशब्दभाक्।।
दिल्लीश्वराज्ञया भूय: प्राप्यासीद्राजशब्दभाक्।।
१९९
अथैकदा समाहूय हरिप्रस्थपुरन्दर:।
राममाज्ञापयामास बहुमानपुर:सरम्।।
राममाज्ञापयामास बहुमानपुर:सरम्।।
२००
रामसिंहमहासिंहकुलकाननसिंहक।
आसामासादनायाऽहं प्रायश: प्रैषयं नृपान्।।
आसामासादनायाऽहं प्रायश: प्रैषयं नृपान्।।
२०१
न तेषु केनचित्तात विजितं तत्र युद्धत:।
तद्गच्छ कच्छ दक्षोऽसि स्वच्छमर्जय दोर्यश:।।
तद्गच्छ कच्छ दक्षोऽसि स्वच्छमर्जय दोर्यश:।।
२०२
दिल्लीमघवता प्रोक्तो मघवा कूर्मभूभुजाम्।
मुद्रादरिद्रपृतन: प्रतस्थे योद्धुमुच्चकै:।।
मुद्रादरिद्रपृतन: प्रतस्थे योद्धुमुच्चकै:।।
२०३
प्रसस्रे भीमनिर्हृादैस्तस्य स्थगितभूतलै:।
अस्थानोद्वेलपाथोधिपाथोभिरिव सैनिकै:।।
अस्थानोद्वेलपाथोधिपाथोभिरिव सैनिकै:।।
२०४
उपमा कूर्मदेवस्य द्विपमारुह्य गच्छत:।
स्यादेव चेद्रविर्यायाद् व्योम्नि सोदयपर्वत:।।
स्यादेव चेद्रविर्यायाद् व्योम्नि सोदयपर्वत:।।
२०५
छत्रेण रुचिरच्छायो धवलेन धराधव:।
बभौ चन्द्रमसा वक्त्रविजितेनेव सेवित:।।
बभौ चन्द्रमसा वक्त्रविजितेनेव सेवित:।।
२०६
तेजोभिरुज्ज्वलद्योतं तं सर्वोपरि वर्तिनम्।
ध्रुवं ग्रहा इव भ्रेमुरारात्सामन्तपार्थिवा:।।
ध्रुवं ग्रहा इव भ्रेमुरारात्सामन्तपार्थिवा:।।
२०७
अश्वव्यूहखुराग्राङ्कनखक्षतविसंष्ठुला।
भूरभूदुपभुक्तेव भृशमध्वनि भूपते:।।
भूरभूदुपभुक्तेव भृशमध्वनि भूपते:।।
२०८
एवं कच्छनृपो गच्छन् ग्राहं ग्राहं नृपोपदा:।
सीमानमाससाद द्रागासामस्य परन्तप:।।
सीमानमाससाद द्रागासामस्य परन्तप:।।
२०९
तत्राऽजनि महाजन्यं तस्याऽसाममहीभुजा।
धावद्धयखुरोद्धूतधूलीदर्शितदुर्दिनम्।।
धावद्धयखुरोद्धूतधूलीदर्शितदुर्दिनम्।।
२१०
युद्ध्यन्तं वीक्ष्य रामेन्द्रं गगनाङ्गणगास्तदा।
शक्रादयो ह्यनिमिषा रामचन्द्रस्य सस्मरु:।।
शक्रादयो ह्यनिमिषा रामचन्द्रस्य सस्मरु:।।
२११
धृतधन्वाऽधिकं गर्जंस्तडिदुज्ज्वलभूषण:।
अवर्षदाशुगं वर्षं जीमूत इव कच्छप:।।
अवर्षदाशुगं वर्षं जीमूत इव कच्छप:।।
२१२
एवं प्रसह्य शत्रूणां कुलान्याकुलयञ्छरै:।
जन्यान्तर्जयजो राजा जुजुषे जयजं यश:।।
जन्यान्तर्जयजो राजा जुजुषे जयजं यश:।।
२१३
हठादासाममासाद्य स्वमुद्घोष्य जयं नृप:।
रङ्गामाटीं चमूसङ्गामगाद्भङ्गाय विद्विषाम्।।
रङ्गामाटीं चमूसङ्गामगाद्भङ्गाय विद्विषाम्।।
२१४
समवायं द्विषां तत्र संक्षोद्य क्षितिवासव:।
गुहावाटीमपि बली वशयामास वामत:।।
गुहावाटीमपि बली वशयामास वामत:।।
२१५
जित्वेति सर्वत: सैन्यान्युद्वृत्तानां महीक्षिताम्।
स ब्रह्मनदमासाद्य स्नातो विप्रानपूजयत्।।
स ब्रह्मनदमासाद्य स्नातो विप्रानपूजयत्।।
२१६
कियन्ति किञ्च तत्रैव दिनानि दिनकृन्महा:।
स ब्रह्मनदकल्लोलकिर्मीरिततटेऽवसत्।।
स ब्रह्मनदकल्लोलकिर्मीरिततटेऽवसत्।।
२१७
इत: पुन: काविलत: पराजिते
हुसेनखाँ नाम्नि निमील्य तिष्ठति।
तुरष्कवास्तोष्पतिराकुलान्तरो
महीन्द्रमह्वास्त महेन्द्रविक्रमम्।।
हुसेनखाँ नाम्नि निमील्य तिष्ठति।
तुरष्कवास्तोष्पतिराकुलान्तरो
महीन्द्रमह्वास्त महेन्द्रविक्रमम्।।
२१८
बरूथिनीं ब्रह्मनदोपकण्ठत:
समुत्समुत्थाप्य समन्ततो वहन्।
चचाल दिल्लीदयितेन सन्निधा-
वनुष्ठिताहुतिररिन्दमो नृप:।।
समुत्समुत्थाप्य समन्ततो वहन्।
चचाल दिल्लीदयितेन सन्निधा-
वनुष्ठिताहुतिररिन्दमो नृप:।।
२१९
तुरङ्गमव्यूहखुरोद्धतैरलं
रजोभरैर्धूसरकेतुधोरणि:।
अतीत्य मार्गं मृगराजचङ्क्रम:
क्रमेण दिल्लीं प्रविवेश पार्थिव:।।
रजोभरैर्धूसरकेतुधोरणि:।
अतीत्य मार्गं मृगराजचङ्क्रम:
क्रमेण दिल्लीं प्रविवेश पार्थिव:।।
२२०
पुराङ्गनाभि: परिपीतयौवन:
समुच्छलच्चामरवीजितच्छवि:।
स सप्तकक्षा: समतीत्य सायुधो
ननाम रामो नवरङ्गमग्रत:।।
समुच्छलच्चामरवीजितच्छवि:।
स सप्तकक्षा: समतीत्य सायुधो
ननाम रामो नवरङ्गमग्रत:।।
२२१
नमन्तमासामजयोज्जलं नृपं
निपीय संम्राडनिमेषया दृशा।
त्वयाऽस्मिवीरेण जयीति तं स्तुव-
न्नितो निषीदेति पुरो न्यवेशयत्।।
निपीय संम्राडनिमेषया दृशा।
त्वयाऽस्मिवीरेण जयीति तं स्तुव-
न्नितो निषीदेति पुरो न्यवेशयत्।।
२२२
समर्च्य तं सत्क्रियया विशिष्टया
कथाप्रसङ्गै: समयं व्यतीत्य च।
न्ययुङ्क्त दिल्लीशतमन्युरादृतो
विमर्दितुं काविलमाविलं परै:।।
कथाप्रसङ्गै: समयं व्यतीत्य च।
न्ययुङ्क्त दिल्लीशतमन्युरादृतो
विमर्दितुं काविलमाविलं परै:।।
२२३
जयात्मजोऽप्यर्कवरात्मजार्थितो
लघु प्रतस्थे विजयाय काविलम्।
नहि क्षमन्ते प्रभुणा प्रचोदिता
विलम्बमुद्दामकुलोद्भटा भटा:।।
लघु प्रतस्थे विजयाय काविलम्।
नहि क्षमन्ते प्रभुणा प्रचोदिता
विलम्बमुद्दामकुलोद्भटा भटा:।।
२२४
ततो हरिप्रस्थपुरात्पुरुक्रमो
बलैर्विनिर्गत्य गति: सतामहो।
स विष्णुसिंहेन सहायवानलं
रयादयात्काविलदेशसम्मुख:।।
बलैर्विनिर्गत्य गति: सतामहो।
स विष्णुसिंहेन सहायवानलं
रयादयात्काविलदेशसम्मुख:।।
२२५
महीपतेरध्वनि मत्तकुञ्जर-
स्रवन्मदै: पङ्किलभावमृच्छति।
महाहवोपस्करभारवाहिना
स्खलत्पदन्यासमयु: क्रमेलका:।।
स्रवन्मदै: पङ्किलभावमृच्छति।
महाहवोपस्करभारवाहिना
स्खलत्पदन्यासमयु: क्रमेलका:।।
२२६
स काविलं प्राप्य हिमाविलं बली
व्यधत्त युद्धं प्रतियोधिभिस्तथा।
नवैर्ननु प्राघुणिकैस्ततान्तरा
नितान्तमासीदमरावती यथा।।
व्यधत्त युद्धं प्रतियोधिभिस्तथा।
नवैर्ननु प्राघुणिकैस्ततान्तरा
नितान्तमासीदमरावती यथा।।
२२७
हता रणे रामनृपेण काबिला
दिवं विमानैरयुरप्सरोवृता:।
गुरोर्गृहं दुश्च्यवनेन लम्भिता
शिशिक्षिरे संस्कृतवाचमुच्चकै:।।
दिवं विमानैरयुरप्सरोवृता:।
गुरोर्गृहं दुश्च्यवनेन लम्भिता
शिशिक्षिरे संस्कृतवाचमुच्चकै:।।
२२८
अहह निजनिवेशाद्विश्लथश्मश्रुकेशा
भयविघटितवेषा जातकम्पप्रवेशा:।
कथमपि हतशेषास्तं प्रणेमुर्विशेषा-
द्विलसति विजितानां प्रायशो रीतिरेषा।।
भयविघटितवेषा जातकम्पप्रवेशा:।
कथमपि हतशेषास्तं प्रणेमुर्विशेषा-
द्विलसति विजितानां प्रायशो रीतिरेषा।।
२२९
इति विजयमवाप्य क्ष्मापति: काविलान्त:
क्षततनुरसिघातैर्गोस्तनीमण्डपस्थ:।
समधिकमभियोद्धुं बङ्गसेन्द्रेण साकं,
रिपुकुलकरिसिंहं विष्णुसिंहं न्ययुङ्क्त।।
क्षततनुरसिघातैर्गोस्तनीमण्डपस्थ:।
समधिकमभियोद्धुं बङ्गसेन्द्रेण साकं,
रिपुकुलकरिसिंहं विष्णुसिंहं न्ययुङ्क्त।।
२३०
नरपतिमथ नत्वा पादयोर्विष्णुसिंह:
कवचकलितमूर्तिर्युद्धविद्याविदग्ध:।
अनुपवनविधूतै: केतुभिर्दिक्षु कूर्मै-
र्विधदिव
कवचकलितमूर्तिर्युद्धविद्याविदग्ध:।
अनुपवनविधूतै: केतुभिर्दिक्षु कूर्मै-
र्विधदिव
२३१
बलकलकलकूर्दत्कीशबुङ्कालपूर्णा
निविडविपिनवीथीर्लोकयंल्लोलदश्व:।
कटुककटककक्षालक्षितानेकलक्ष-
प्रतिभटविकटं द्राग्बङ्गसं विष्णुराप।।
निविडविपिनवीथीर्लोकयंल्लोलदश्व:।
कटुककटककक्षालक्षितानेकलक्ष-
प्रतिभटविकटं द्राग्बङ्गसं विष्णुराप।।
२३२
अन्योन्यमुक्तशरवर्षनिकृत्तकुम्भि-
कुम्भस्थलोच्छलितमौक्तिकपुञ्जमञ्जु।
प्रावर्तत प्रधनमस्य परै: परेत-
पोलोदरम्भरिकबन्धकदम्बभीमम्।।
कुम्भस्थलोच्छलितमौक्तिकपुञ्जमञ्जु।
प्रावर्तत प्रधनमस्य परै: परेत-
पोलोदरम्भरिकबन्धकदम्बभीमम्।।
२३३
कीर्तिं करिष्णुरसहिष्णुररिप्रकर्षं
विष्णु: स जिष्णुरुचिराहवसञ्चरिष्णु:।
तस्तार तारतरहुङ्कृतिभि: कृपाण-
कृत्तै: शिरोभिरवनीं द्विषदावलीनाम्।।
विष्णु: स जिष्णुरुचिराहवसञ्चरिष्णु:।
तस्तार तारतरहुङ्कृतिभि: कृपाण-
कृत्तै: शिरोभिरवनीं द्विषदावलीनाम्।।
२३४
तृष्णार्त्तराक्षसपरम्परया समन्ता-
दध्यासितोन्नततटा विकटास्यपङ्क्त्या।
निश्चक्रमु: क्षतगजाश्वभटाङ्गकूटा-
त्कोष्णा: क्षणात्क्षतजशैवलिनीप्रवाहा:।।
दध्यासितोन्नततटा विकटास्यपङ्क्त्या।
निश्चक्रमु: क्षतगजाश्वभटाङ्गकूटा-
त्कोष्णा: क्षणात्क्षतजशैवलिनीप्रवाहा:।।
२३५
इत्थं प्रमथ्य रणसिन्धुमुदग्रखड्ग-
मन्थेन शत्रुमकराकुलमाशु विष्णु:।
देवेन्द्रवृन्दकलनीयचरित्रराशि-
रुच्चै: स्थिरां स विजयश्रियमाससाद।।
मन्थेन शत्रुमकराकुलमाशु विष्णु:।
देवेन्द्रवृन्दकलनीयचरित्रराशि-
रुच्चै: स्थिरां स विजयश्रियमाससाद।।
२३६
गुल्मं स तत्र विनिधाय निजं कुमार:
शत्रुप्रहारविहितव्रणमुग्धमूर्त्ति:।
आगत्य काबिलमनाविलकीर्तिरारात्
स्वं श्लाघमानमवनीदयितं ववन्दे।।
शत्रुप्रहारविहितव्रणमुग्धमूर्त्ति:।
आगत्य काबिलमनाविलकीर्तिरारात्
स्वं श्लाघमानमवनीदयितं ववन्दे।।
२३७
श्रीविष्णुसिंहविजयं विजयोपमर्द्धि:
श्रुत्वा मुदाविदलितव्रणमर्मदु:स्थ:।
अम्बावतीमव चिरं रुचिरोऽसि वत्स
व्याहृत्य भूपतिरिति श्लथचेतनोऽभूत्।।
श्रुत्वा मुदाविदलितव्रणमर्मदु:स्थ:।
अम्बावतीमव चिरं रुचिरोऽसि वत्स
व्याहृत्य भूपतिरिति श्लथचेतनोऽभूत्।।
२३८
श्रीमत्कुन्दननन्दनवैद्य श्रीकृष्णरामकविकलिते।
काव्येऽत्र कच्छवंशे नवम: सर्ग: समाप्तिमापेदे।।